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बिहार में अफसरशाही हाबी है और सरकार नाम की कोई चीज नहीं है! विभाग मन से ट्रांसफर-पोस्टिंग करना ही नहीं चाहती है-प्रणय कुमार शिक्षक नेता।

मुजफ्फरपुर/पटना : ट्रांसफर-पोस्टिंग नीति के खिलाफ औरंगाबाद के शिक्षकों की ओर से दायर केस संख्या CWJC 17441/2024 की सुनवाई हाइकोर्ट पटना में दिनाँक 19 नवंबर 2024 को हुई।

जिसमें शिक्षकों की ओर से विद्वान अधिवक्ता मृत्युंजय कुमार एवं सीनियर अधिवक्ता ललित किशोर ने शिक्षकों का पक्ष रखा।

हाई कोर्ट के द्वारा ट्रांसफर/पोस्टिंग पर स्टे लगाया गया है। हालांकि ये स्टे सिर्फ याचिकाकर्ता के लिए ही लगाया गया लेकिन, बिहार सरकार ने आनन फानन में ट्रांसफर-पोस्टिंग पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया है।

बिहार सरकार के शिक्षामंत्री सुनील कुमार ने प्रेस वार्ता में बताया कि अब पांचों चरण के सक्षमता परीक्षा लेने के बाद ही पदस्थापन और स्थानांतरण होगा।

आपको बता दे कि बिहार सरकार ने बड़े ही चालाकी से काम लिया है और टट्रांसफर और पोस्टिंग के काम को टाल दिया है क्योंकि आगामी वर्ष 2025 चुनावी वर्ष है और इस ट्रान्सफर पोस्टिंग से शिक्षकों में काफी नाराजगी देखने को मिल रही थी। खासकर अनुमंडल स्तर पर ट्रांसफर और सेवा निरंतरता का लाभ नहीं देने से शिक्षक कोर्ट की रुख किये थे।

हालांकि अभी शिक्षक संगठनों द्वारा दायर याचिका में सुनवाई नहीं हुई है। जल्द ही उन याचिकाओं में भी सुनवाई होनी है।

सरकार साजिश के तहत पूर्व से नियोजित शिक्षकों के स्नातक प्रोन्नति, कालबद्ध प्रोन्नति और प्रधानाध्यापक की प्रोन्नत्ति गटकना चाहती है। शिक्षकों को करवाई का डर दिखाकर हमेशा ही चुप कराना छाती है। ऐसे में शिक्षकों को के लिए एक मात्र रास्ता कोर्ट का ही है।

शिक्षक नेता जमील अहमद विद्रोही ने कहा कि विधान सभा सदन की बात करें तो वहाँ किसी की नहीं चलती। स्वयं मुख्यमंत्री के आदेश को भी कोई पदाधिकारी नहीं मानते। बिहार में आज लोकतंत्र नहीं बल्कि अफसरशाही हाबी है। जो पदाधिकारी चाहते है वही हो रहा है। बिहार में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है।

वहीं बंशीधर ब्रजवासी ने कहा कि सरकार शिक्षकों के प्रोन्नति के मामले में जीत दर्ज कर चुकी है उसे भी अवमानना कर रही है। मतलब साफ है कोर्ट और संविधान से भी ऊपर यहां के अफसर हो चुके हैं।

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