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श्री कात्यायनी शक्ति पीठ का इतिहास...........

भगवान कृष्ण की नगरी में वृन्दावन में भी देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक कात्यायनी पीठ स्थित है। इस मंदिर का नाम प्राचीन सिद्धपीठ में आता है। बताया जाता है कि यहां माता सती के केश गिरे थे, इसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। नवरात्र के मौके पर देश-विदेश से लाखों भक्त माता के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। बताया जाता है कि राधारानी ने भी श्रीकृष्ण को पाने के लिए इस शक्तिपीठ की पूजा की थी।
गीता के अनुसार, राधारानी ने गोपियों के साथ भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी पीठ की पूजा की थी। माता ने उन्हें वरदान दे दिया लेकिन भगवान एक और गोपियां अनेक, ऐसा संभव नहीं था। इसके लिए भगवान कृष्ण ने वरदान को साक्षात करने के लिए महारास किया।
नवरात्र के दौरान माता के इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश रहता है वर्जित
हर मनोकामना होती है पूरी
तब से आज तक यहां कुंवारे लड़के और लड़कियां नवरात्र के मौके पर मनचाहा वर और वधु प्राप्त करने के लिए माता का आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। मान्यता है जो भी भक्त सच्चे मन से माता की पूजा करता है, उसकी मनोकामना जल्द पूरी होती है।
भगवान कृष्ण ने भी की थी पूजा
स्थानीय निवासियों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुलदेवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी। उस प्रतिमा की पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण ने कंस का वध किया था। हर साल नवरात्र के मौके पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है।
माता के इस मंदिर में लगता है ढाई प्याला शराब का भोग, होते हैं चमत्कार
इन्होंने करवाया मंदिर का निर्माण
कात्यायनी पीठ मंदिर का निर्माण फरवरी 1923 में स्वामी केशवानंद ने करवाया था। मां कात्यायनी के साथ इस मंदिर में पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेशकी मूर्तियां हैं। लोग मंदिर को मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण देखते ही श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और दिल और दिमाग में शांति पाते हैं।

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