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ऐतिहासिक गुंबद-ए-खज़रा कान्फ्रेंस कामयाबी के साथ सम्पन्न हुआ

कौशाम्बी। कस्बा करारी में मुस्लिम नौजवान कमेटी के तत्वाधान में ऐतिहासिक दो दिवसीय गुंबद-ए-खज़रा कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन का जलसा शे़ख अबू सईद किबला सज्जादनशीन खानकाहे आरिफिया सैयद सरावाँ के संरक्षण में तथा मौलाना मोहम्मद इमरान हबीबी की अध्यक्षता में सकुशल संपन्न हुआ जिसमें बड़ी संख्या में कौशांबी तथा आसपास के जनपद के रहने वालों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई किस ऐतिहासिक गुंबद-ए-खज़रा कॉन्फ्रेंस में देश के प्रख्यात उलेमा और शो़रा आमंत्रित किए गए, कॉन्फ्रेंस का शुभारंभ पवित्र कुरान की आयत से कारी मोहम्मद जाकिर साहब ने किया।
कॉन्फ्रेंस को हजरत सैयद सुलेमान अशरफ साहब ने संबोधित करते हुए कहा कि मां-बाप अगर नाराज हो तो औलाद की दुआ कभी कबूल नहीं होती और ना ही किसी दूसरे की दुआ उसके पक्ष में कबूल होती है ,उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम किसी झूठे बलात्कारी व शराबी के सम्मान का आदेश कभी नहीं देता, परंतु मां-बाप यदि झूठे शराबी भी हों तो भी उनका सम्मान औलाद पर जरूरी है। उन्होंने आगे फरमाया कि इंसान यदि खाना-ए-काबा को देखे तो उसे खाना-ए-काबा को देखने का सवाब मिलेगा, यदि हज्र असवद को देखे तो हज्र असवद को देखने का सवाब मिलेगा परंतु यदि वह माता-पिता के चेहरे को देखें तो उसे हज-ए- मकबूल का सवाब मिलता है। उन्होंने माता-पिता के प्रतिष्ठा पर प्रकाश डालते हुए आगे कहा की माता-पिता की सम्मान हजरत ख्वाजा ओवैस करनी रहमतुल्लाह से सीखो कि वह मां-बाप के खिदमत के वास्ते हुजूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारगाह में उपस्थित ना हो सके इसके बावजूद अल्लाह ने उनका मकाम मां-बाप की खिदमत के जरिए ऊंचा कर दिया, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा से फरमाया की ओवैस से जब तुम मिलो तो उनसे कहो कि मेरी उम्मत की मगफिरतके लिए अल्लाह से दुआ करें। आगे उन्होंने नमाज के बारे में बताया कि यदि तुम नमाज पढ़ोगे तो हजारों बुराइयों से बच जाओगे उन्होंने कहा कि साइंस और मेडिकल में शारीरिक बीमारी का तो इलाज है परंतु अंतरात्मा की बीमारी का इलाज नहीं है इस बीमारी का कहीं पर इलाज है तो वह नमाज से है उन्होंने हुजूर से मोहब्बत पर भी प्रकाश डाला और कहा कि हुजूर की मोहब्बत हर चीज की मोहब्बत से बढ़कर है कॉन्फ्रेंस में नात व मनक़बत के अश़आर भी पढ़े गए जिन्हें श्रोताओं ने रात भर बड़ी खामोशी से सुना ,यह अशआर निम्नलिखित है।
जो दरबारे शहे कौनैन के मँगते नहीं होते,
हकीकत है कि वह तकदीर से ऊंचे नहीं होते ।
(हसन तालिब सासारामी)
दरे शब्बीर की मिट्टी जो सर का ताज हो जाए।
यकीनन ये मेरी तकदीर का मेराज़ हो जाए ।
(तबरेज वारसी कलकत्तवी)
आए खत्म रोसूल मक्की मदनी कौनैन में तुमसा कोई नहीं ,
ऐ नूर ए मुजस्सम तेरे सिवा, महबूब खुदाए का कोई नहीं। (सलमान अशरफी मुंबई)
इस मुल्क को लहू की जरूरत अगर पड़ी,
सरहद पर सर कटाने मुसलमान जाएंगे ।
(आरिफ हसन जबलपुरी)
सर कटाकर हुसैन जिंदा है ,
और जैसे यजीद था ही नहीं। (अफजल इलाहाबादी)
रास्ते निखर निखर गए,
मुस्तफा जिधर जिधर गए। (उस्मान गनी दार्जिलिंग )
दुनिया वाले किसी को क्या देंगे, चल मदीने में मुस्तफा देंगे।
( ताहिर राजा रामपुरी)
अंत में सलातो सलाम पढ़ा गया और देश दुनिया में शांति के लिए दुआ की गई इस अवसर पर मोहम्मद इमरान प्रधानाचार्य मदरसा जामिया इमदादुल उलूम ने जलसे में उपस्थित लोगों का आभार प्रकट किया इस अवसर पर क्षेत्रीय उलेमा भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे मौलाना मेराज अहमद साहब, मौलाना मुमताज अहमद साहब, मुफ्ती हबीबउल्लाह साहब ,कारी रफीउल्लाह साहब ,मौलाना मोहम्मद अकरम राजा साहब, मौलाना फहद अजहरी साहब इत्यादि लोगों ने अपनी उपस्थिति प्रकट की।

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