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गुंबद-ए-खज़रा कान्फ्रेंस का पहला दिन कामयाबी के साथ सकुशल सम्पन्न हुआ


कौशाम्बी। कस्बा करारी के आजादनगर मे मुस्लिम नौजवान कमेटी की ओर से आयोजित दो दिवसीय गुम्बद-ए-खज़रा कान्फ्रेंस के पहले दिन का जलसा सकुशल सम्पन्न हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में कौशाम्बी और आसपास के जनपद के रहने वालों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। ज्ञात रहे कि यह ऐतिहासिक कान्फ्रेंस मुस्लिम नौजवान कमेटी के तत्वाधान में तथा शेख अबु सईद एहसानउल्ला के संरक्षण तथा मौलाना इमरान हबीबी साहब की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। जलसे का संचालन मौलाना आरिफ हसन साहब ने किया, कार्यक्रम का शुभारंभ पवित्र कुरआन से कारी मो.जाकिर साहब ने किया तत्पश्चात मौलाना श़म्सुज्ज़मा नागपुरी ने जलसे को संबोधित करते हुए कुरआन पाक के हवाले से फरमाया आप ईमान वालों अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ उन्होंने कहा कि कुरआन एक नहीं कई जगहों पर अल्लाह पाक से डरने का आदेश दिया है। मगर हमारा हाल ये है कि हमारे अंदर थोड़ा सा भी अल्लाह का डर नहीं है, यदि हमारे अंदर अल्लाह का डर होता तो हमारी नमाजे ना छूटतीं, रोज़े न टूटते, शराब न पीते, जुआ न खेलते।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा सूफियों के इमाम गज़ाली रहमतुल्लाह ने फरमाया जो अल्लाह के डर का दावा करते हैं और गुनाह नहीं छोड़ते हैं वह झूठा है। और जो हुजूर से मोहब्बत का दावा करे और सूफियों से नफरत करे वह झूठा है। और जो जन्नती होने का दावा करे जहन्नमियों का काम करे वह झूठा है। आपने अपने बयान में फरमाया कि हुजूर पाक स.अ.व. इन आयतों की तिलावत करते जिसमें अल्लाह के डर का उल्लेख होता तो आप इतना रोते कि आपकी दाढ़ी मुबारक आँसुओं से भीग जाती, आप स.अ.व. जब कब्र के पास से गुजरते तो रोते और कहते कि इस कब्र में जाने की तैयारी करो। उन्होंने कब्र की तैयारी का तरीका बताते हुए फरमाया कि अल्लाह का डर, गुनाहों का परित्याग, शराब से दूरी, झूठ से घ्रणा, हराम चीजों से दूरी, नमाज पढ़ना, रोज़ा रखना, हलाल रोजी कमाना कब्र की तैयारियों मे से है।उन्होंने बताया कि जिस मनुष्य मे अल्लाह का डर होता है
उस मनुष्य की जबान गीबत, चुगली, गाली फिजूल बातों से सुरक्षित रहती है। उसके कान बुराई सुनने से सुरक्षित रहते हैं, उसकी आँखें हराम चीजों को देखने से सुरक्षित रहती हैं, उसका पेट हराम खाने से सुरक्षित रहता है, उसके हाथ बुरा काम करने से रुक जाते हैं, उसका दिमाग बुरा काम सोचने से रुक जाता है।
जलसे में नातिया कलाम का दौर भी चला निम्नलिखित अश़आर खूब पसंद किए गए।
कोई क्या समझे कोई क्या जाने,
मुस्तफा क्या हैं यह खुदा जाने,,
नन्हे असगर तेरे तबस्सुम की,
चोट क्या थी हुरमला जाने।
(हसन तालिब)
मिदह का हर उनवान तेरा,
खुतबा पड़े कुरान तेरा ,
अल्लाह-अल्लाह शान तेरी
जिक्र करे रहमान तेरा ।
(अफजल इलाहाबादी)
जो उनकी मोहब्बत में रोता नहीं है ,
कभी उसका चेहरा चमकता नहीं है ।
(जैनुल आब्दीन कानपुरी)
मेरे होठों पर नाते नबी आ गई,
जिस्म से रूह तक ताजगी आ गई ।
(शकील आरफी फर्रुखाबादी)
बावजू़ आवे इश्क से होलें,
नात जब भी लिखा करे कोई।
(तबरेज वारसी)
अंत में सलातो सलाम पढ़ा गया देश वह दुनिया में अमन की दुआ की गई इस अवसर पर शहरी उलेमा और शो़अरा के अलावा इलाकाई लोग भी अधिक संख्या में उपस्थित रहे विशेष तौर पर डॉक्टर मुजीबुर्रहमान अलीमी, मौलाना मेराज अहमद, मुफ्ती हबीबुल्लाह, मौलाना मुमताज अहमद ,मौलाना अकरम रजा तथा कारी मोहम्मद इमरान प्रधानाचार्य जामिया इमदादुल उलूम ने सभी श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया।

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