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ग्राम पंचायत मे राजस्व भूमि सिर्फ कागजो मे रह गई है जमीनी जमीनी स्तर पर दबंगों का कब्जा

*गोचर भूमि पर लोगों का कब्जा, पंचायतों में नहीं बची राजस्व की भूमि*

कुरवाई बेतबा पुल पर घूमते आवारा पशु।

कब्जे हटाए नहीं, कैसे करेंगे सीमांकन

तहशील में हजारो हेक्टेयर से अधिक गोचर एवं नदी नालो की की राजस्व भूमि पंचायतों में छोड़ी गई है। जो आज पूरी तरह से अतिक्रमण में है। किसी भी पंचायत या कस्बे में गोचर भूमि खाली नहीं है।एवं अन्य सरकारी भूमि पर किसी पर खेती हो रही है तो कॉलोनियां बसा ली गई हैं। ऐसे में राजस्व विभाग के पास कई जगह नक्शा भी गायब है, जिससे जमीन का सीमांकन करने में बड़ी परेशानी होगी। समाजसेवियों का मानना है कि हर ग्राम पंचायत में गौशाला खोलने की घोषणा स्वागत योग्य है, लेकिन इसके अमल में लाने के लिए जिले के राजस्व रिकार्ड में दर्ज हजारों हेक्टेयर भूमि का जब तक सीमांकन करके भूमि को खाली नहीं करवाया जाता तब तक गौशाला के लिए भूमि उपलव्ध करवाना सबसे बड़ी चुनौती होगी।



संवाददाता गजेंद्र सिंह दांगी

प्रदेश की सत्ता पाने के लिए बीजेपी ने चुनाव के पहले जनता के लिए लोक-लुभावन घोषणाएं की थीं। जिसमे गौ माता का मुद्दा एक प्रमुख मुद्दा था लेकिन इस घोषणा पर अमल करने के लिए सबसे बड़ी बाधा भूमि है। क्योंकि ग्राम पंचायतों में शासकीय भूमि बची ही नहीं है। अधिकतर भूमि पर वहां के लोगो ने कब्जा जमा लिया है। निजी उपयोग के कारण शासन की आरक्षित गोचर एवं अन्य सरकारी भूमि नक्शे से गायब हो चुकी है। सरकार के समक्ष यह समस्या अवश्य होगी कि जिन गांवों में श्मशान घाट बनाने की जगह तलाशना मुश्किल हो रहा है, वहां गोशालाओं के लिए भूमि कहां से लाएंगे।

शासन की खाली पड़ी राजस्व भूमि पर खेती एवं अतिक्रमण कर मकान बनने की बजह अत्यधिक मुर्दा जलाने एवं बरसात का पानी निकलने तक के लिए गांव में शासकीय भूमि नहीं बची है। इन हालातों में गौ चर के लिए भूमि सबसे बड़ी बाधा साबित होगी। बता दें कि तहशील मे हजारों हेक्टेयर भूमि छोड़ी गई है, जिसमें समाजसेवियों द्वारा दान की गई भूमि अलग से है। इसके अलावा गांव-गांव में खाली पड़ी राजस्व भूमि पर अनेक प्रकार से उपयोग लेने की वजह जमीन का एक टुकड़ा तक खाली नहीं किया। इसकी वजह से विकास जनित कार्यों जैसे शासकीय भवन निर्माण, गोचर के लिए भूमि नहीं है, जिससे आवारा मवेशियों की सर्वव्यापी समस्या किसानों की खेती को निरंतर नुकसान पहुंचा रही हैं।

किसानों की शिकायत के बाद भी नहीं हो रही कोई कार्रवाही

जिस तरह से लोगों ने गोचर भूमि को निजी उपयोग में शामिल कर लिया है। उसी तरह से आवारा मवेशियों ने भी गांवों में किसानों की खेती में उत्पाद मचाना शुरू कर दिया है। प्रत्येक गांव की स्थिति पर गौर फरमाएं तो यहां किसान अपनी फसल बचाने के लिए खेतों पर रतजगा करने को मजबूर हैं। खेत से ओझल होते ही सैकड़ों की संख्या में टोली बनाकर चलने वाला पशुओं का झुंड फसल को तबाह करने में देर नहीं करता है। सबसे अधिक समस्या कलरयाई और भौराशा कुरवाई क्षेत्र के किसानों को हो रही है। किसानों का मानना है कि बाहर से आवारा पशुओं को पहाड़ एवं नगर में ढील दिया है। जिनसे फसल बचाना मुश्किल हो रहा है। ग्राम पंचायत झगरिया के किसान सतेन्द्र सिंह चौहान बताते हैं कि खेतों में सरसों, चना, गेहूं और मसूर की फसल में मवेशी सबसे अधिक नुकसान करते हैं। आवारा मवेशियों की वजह से गांव में भी नहीं जा पाते हैं।

गोचर भूमि पर कब्जे से बढ़ रही अावारा मवेशियों की संख्या, फसलों का हो रहा नुकसान

राजस्व रिकार्ड में दर्ज भूमि का सीमांकन करवाकर शासन उपयोग में लेती है तो गौशाला सहित आसपास की भूमि चारा विकास के लिए पर्याप्त भूमि होगी। क्योंकि गोचर भूमि का उपयोग होने की वजह से ही आवारा मवेशियों की समस्या किसानों के लिए खेती की राह में सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। बात करें कुरवाई की तो यहां प्रत्येक ग्राम पंचायत में शासन ने भूमि आरक्षित की थी। लेकिन उसका लाभ पशुओं को नहीं मिल सका है। शासकीय हजारों बीघा जमीन पर लोग इस कदर कब्जा जमाए बैठे हैं
कलरयाई सरकंडी करमपुर सहित अन्य सेकड़ो ग्रामो मे हजारों बिगा शासकीय भूमि जमीन पर दवंगो ने कब्ज़ा कर रख्खा है

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