शाम को सूर्य अर्घ्य के बाद घर के पर कोशी (हाथी) पूजन किया गया फिर अगले दिन दूसरे अर्घ्य की सुबह घाटों पर कोसी (हाथी)भरा जायेगा
शिवहर तरियानी प्रखंड के ग्राम नरवरा के पंचायत समिति दिलीप साहनी ने आपने दरवाजे पर कोसी (हाथी) पूजन किया उन्होंने बताया कि
लोक आस्था का महापर्व छठ ही ऐसा पर्व है जिसमें कोसी (हाथी) भरने की परंपरा है. इसमें मिट्टी के बने हाथी पर दीये बने होते हैं. कोई हाथी 6 दीए का रहता है तो कोई 12 दीए का और कोई 24 दीए का. हाथी को लोग पहले अर्घ्य के बाद अपने घर पर पूजन करते हैं . फिर अगली सुबह दूसरे अर्घ्य के बाद मिट्टी के हाथी को जल में विसर्जित कर दिया जाता
ऐसे में जिन लोगों की मन्नतें पूरी हुई होती है या जिनके घर में कोई मांगलिक कार्य हुआ होता है, वह कोसी के साथ साथ हाथी भी भरते हैं. जिसकी जितनी मन्नत होती है, हिसाब से हाथी भरा जाता है.
कोसी भरने वाला पूरा परिवार उस रात रातभर जगा करता है. घर की महिलाएं कोसी के सामने बैठ कर गीत गाती हैं, तो पुरुष भी इस कोसी की सेवा करते जिस घर में कोसी की पूजा होती है, वहां रात भर उत्साह का माहौल होता है. काफी नियम और कायदे के साथ पहले अर्घ्य से दूसरे अर्घ्य तक कोसी की पूजा की जाती है और भगवान सूर्य का आभार व्यक्त किया जाता है.
संवाददाता राजीव कुमार की रिपोर्ट