ग़ज़ल - दर्द से यूँ आज दामन ज़िन्दगी का...
दर्द से यूँ आज दामन.........ज़िन्दगी का तार है |लग रहा है आज यूँ..........जीना बहुत दुश्वार है ||ख़ून पीने के लिए.........हैं लोग तनकर के खड़े,इनसे रिश्तेदारियाँ क्या.........बात भी बेकार है ||वक़्त ने जाने कहाँ...........पहुँचा दिया है ये हमें,ठोकरों पे ठोकरों से..........दिल बहुत बेज़ार है ||खूबसूरत ज़िस्म पर तो....टिक रही है हर नज़र,उम्र भर.........रिश्ता निभाने से मगर इन्कार है ||क्या ख़ुदा या क्या ख़ुदाई...दोनों दुश्मन हो गए,एक है ओझल..........तो दूजे हाथ में तलवार है ||चल रहे हैं ज़िन्दगी की राह हम इस ख़्वाब में,कोई तो शायद कहीं है ज़िस्म जो दिलदार है ||दिल से धोखे हो रहे हैं.....मज़हबों के नाम पर,ये भी शायद बावला है..........और वो दीवार है ||इस तरह ग़मगीन जीना....क्या हमें बहलाएगा,जो भी अपना लग रहा है...आदमी मक्कार है ||यूँ गुज़रती जा रही है..........ज़िन्दगी की उम्र ये,थरथराते ज़िस्म की..........ये रूह भी बीमार है ||कर रहे हैं कोशिशें हम फिर भी जीने के लिए,पर मुक़द्दर है कि केवल.....हार ही हर बार है | रचनाकार – अभय दीपराज संपर्क सूत्र – 9893101237