*"वीर संवत: जैन धर्म की धरोहर और प्राचीन भारतीय समय गणना का प्रतीक"*
विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार, कैलेंडरों का इतिहास मानव सभ्यता के विकास में गहरा महत्व रखता है। प्राचीन काल से समय को मापने और व्यवस्थित करने की मानवीय आवश्यकता ने विभिन्न सभ्यताओं में अलग-अलग कैलेंडरों का जन्म दिया। भारतीय उपमहाद्वीप में वीर संवत और विक्रम संवत जैसे संवतों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। इनमें सबसे प्राचीन संवत के रूप में वीर संवत को प्रमुखता दी जाती है, जो जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण (मोक्ष) से जुड़ा हुआ है। यह निर्वाण की घटना लगभग 527 ईसा पूर्व मानी जाती है और वीर संवत का आरंभ इसी के बाद हुआ।
वीर संवत का यह ऐतिहासिक संबंध इसे एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक बनाता है। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, यह केवल समय मापन का साधन नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा है। वीर संवत भगवान महावीर के मोक्ष के साथ जुड़ा है, और इसके माध्यम से जैन धर्म अपने अनुयायियों को उन आदर्शों की याद दिलाता है जिन पर महावीर स्वामी ने अपना जीवन समर्पित किया। यह संवत न केवल जैन अनुयायियों के लिए बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी गहरे महत्व का प्रतीक है।
दूसरी ओर, भारतीय संस्कृति और परंपराओं में विक्रम संवत का भी विशेष स्थान है। सम्राट विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व में इस संवत की स्थापना की थी। यह संवत हिंदू धर्म के विभिन्न पर्वों, त्योहारों और अनुष्ठानों में प्रमुखता से अपनाया जाता है। विक्रम संवत भारतीय समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों का आधार बनता है और इसने नेपाल जैसे देशों में भी एक आधिकारिक स्थान प्राप्त किया है। यह संवत भारत की प्राचीन और समृद्ध परंपराओं को सजीव बनाए रखने में सहायक रहा है।
वीर संवत और विक्रम संवत दोनों ही चंद्र-सौर प्रणाली पर आधारित हैं। इस प्रणाली में महीनों की गणना चंद्रमा के चक्र के अनुसार होती है, जबकि वर्ष का निर्धारण सूर्य की गति के आधार पर किया जाता है। यह प्रणाली भारतीय जीवन के साथ गहराई से जुड़ी है और भारतीय जलवायु, फसल चक्र और सांस्कृतिक आयोजनों के लिए बेहतर अनुकूलन प्रदान करती है। भारतीय समाज की कृषि-आधारित जीवनशैली में, इस कैलेंडर प्रणाली का विशेष महत्व है, क्योंकि यह साल भर के मौसमों और उत्सवों का एक संगठित ढांचा प्रस्तुत करती है।
इन प्राचीन भारतीय संवतों की तुलना में, ग्रेगोरियन कैलेंडर, जिसे अंग्रेजी कैलेंडर भी कहते हैं, अपेक्षाकृत आधुनिक माना जाता है। इसे 1582 में पॉप ग्रेगरी XIII द्वारा लागू किया गया था और यह एक सौर आधारित कैलेंडर है। यह कैलेंडर आज वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है और भारत में भी सरकारी और व्यापारिक कार्यों में इसका आधिकारिक रूप से प्रयोग किया जाता है। हालांकि, भारतीय परंपराओं में धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन के लिए विक्रम संवत और साका संवत का ही पालन होता है। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि आधुनिक समय में भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर इन प्राचीन संवतों से गहराई से जुड़ी हुई है।
इस प्रकार, यदि सबसे प्राचीन कैलेंडर की बात करें तो वीर संवत का स्थान सबसे प्रमुख है। जैन धर्म में इसे भगवान महावीर की शिक्षा और उनके आदर्शों का प्रतिनिधित्व करने वाला संवत माना जाता है, जो 2550 वर्षों से भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है। यह प्राचीन संवत भारत की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने में सहायक है और धार्मिक आस्थाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वीर संवत और विक्रम संवत, दोनों भारतीय समाज के लिए समय मापन के साथ-साथ धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का एक प्रतीक भी हैं।
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*दिनेश देवड़ा धोका*
अहमदाबाद
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