पत्रकारों की समस्या......
पत्रकारों से अपने छोटे से छोटे कार्यक्रम की न्यूज़ और फोटो लगवाने को आतुर रहने वाले संगठनों और नेतागणों को यह समझना यह चाहिए कि किसी भी कार्यक्रम में जाने पर बाइक में पेट्रोल और कवरेज में समय ख़र्च होता है और बाद में न्यूज़ बनाने में दिमाग़ ख़र्च होता है। जो पत्रकार का अपना ख़ुद का ख़र्च होता है। जिसके बदले में उसे कुछ नहीं मिलता यानि पत्रकार लगातार फ्री सेवा करते हैं।किसी त्यौहार पर जब यही पत्रकार विज्ञापन के लिए कॉल करते हैं तो बहुत से लोग तो कॉल रिसीव ही नहीं करते कुछ धंधा मंदा, काम नहीं है या दूसरे बहाने बनाने लगते हैं, होना तो यह चाहिए कि जो पत्रकार एक कॉल पर आ जाता है या केवल व्हाट्सएप्प पर भेजे गए फोटो से न्यूज़ बना देता है उसे आप स्वयं कॉल करके बुलाएं और सम्मान के साथ विज्ञापन लगाने को कहें।अगर पत्रकारों का सहयोग चाहिए तो पत्रकारों को सहयोग भी करना पड़ेगा।क्योंकि एक तरफ़ा मुहब्बत टिकाऊ और अच्छी नहीं होती।मेरा मक़सद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं केवल पत्रकारों की समस्या को सामने लाना है।जिसे सभी को समझना पड़ेगा।