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उत्तर प्रदेश भाषा विभाग द्वारा "श्रीराम चरितम" का भव्य संगीतमय मंचन।

उत्तर प्रदेश भाषा विभाग* द्वारा
*"श्रीराम चरितम"* का भव्य संगीतमय मंचन।
*लखनऊ|* उत्तर प्रदेश भाषा विभाग के द्वारा दो दिवसीय मंचन राम जन्म से प्रारंभ हो रावण वध तक की संगीतमय नाट्य प्रस्तुति *"श्रीराम चरितम"* का मंचन भव्य रूप से 60 कलाकारों द्वारा संस्कृत संस्थानम प्रेक्षागृह में किया गया। इस भव्य संगीतमय रामायण प्रस्तुति की *परिकल्पना, लेखन, संगीत व निर्देशन वरिष्ठ नौटंकी व नाट्य निर्देशक *अमित दीक्षित 'रामजी'** द्वारा किया गया।
*"माटी की खुशबू है लोक संगीत में, है जड़ों में शास्त्रीयता बड़ी,*
*देखिये सुनिये तो ये नया है चलन, तबले नक्कारे का है अनोखा मिलन"*
इस प्रस्तुति में प्रथम दिवस राम जन्म से लेकर राम–सीता तक का प्रसंग होगा द्वितीय दिवस राम वनवास से रावण वध तक की संगीतमय रामायण है।
*"अधर्म पर धर्म की विजय का ये पर्व है, भारतीय संस्कृति पर हम सभी को गर्व है"*
इस संगीतमय नाट्य प्रस्तुति में प्रभु राम के आदर्श व चरित्र का पूर्ण चित्रण है। पहली बार रामायण के प्रसंग में मंच पर 2024 में नारदजी का आना और सूत्रधार के रूप में समाज को प्रभु श्रीराम की लीला व उनके सुकुत्यों का वर्णन कर उनके मर्यादित व्यक्तित्व व उत्कृष्ट भावों से समाज को अभिप्रेरित करना प्रस्तुति में नवीनता दर्शाता है। कथा रावण के महायज्ञ में दसशीश के समर्पण से आरंभ होती है। शिव जी से वरदान के उपरांत वो और भी अधिक बलशाली और अत्याचारी हो जाता है। उसके इन कुकृत्यों के परिणाम स्वरूप प्रभु को अवतरित होना पड़ता है। मां जानकी से पुष्प वाटिका में मिलते हैं, फिर राजा जनक के धनुष के प्रण को पूर्णकर सीताजी को जीवन संगिनी बनाते हैं। राम जी सीता जी सहित अयोध्या में निवास करने लगते हैं। दशरथ के मन में विचार आता है कि वह राम को राजा बना दें परंतु मंत्र की कतलाई से कैकई द्वारा राम को 14 वर्षों का वनवास और भरत को राजगद्दी देने का विचार आता है और उसी क्रम में राम जी को 14 वर्षों का वनवास दे दिया जाता है इसी विरह में महाराज दशरथ प्राण त्याग देते हैं। जब भरत को सब ज्ञात होता है तो वह राम जी को लेने वनों में जाते हैं। परंतु राम जी के इनकार करने पर वह उनकी खड़ाऊ लेकर राजगद्दी पर रखते हैं और नंदीग्राम में रहकर राजपथ चलते हैं। राम और आगे बढ़कर पंचवटी में निवास करते हैं जहां रावण की बहन सूर्पनखा जाकर उनके रूप पर मोहित हो जाती है और उनसे विवाह का आग्रह करती है परंतु उनके एक नई व्रत धारण के कारण वह इनकार कर देते हैं और इस तरह वह विकराल रूप धरकर सीता जी को करने के लिए बढ़ती है परंतु लक्ष्मण उसके नाक कान काट देते हैं। अपनी काटी नाक लेकर सूर्पनखा रावण के पास जाती है रावण क्रोध में भरकर सीता जी का हरण कर लेता है राम जी सीता जी को खोजते हुए वन वन भटकते हैं और मार्ग में सबरी से उनकी मुलाकात होती है उसका उद्धार करने के उपरांत वह उसके बताएं मार्ग पर किष्किंधा की ओर बढ़ते हैं जहां उनकी भेंट हनुमान जी से होती है और हनुमान जी उन्हें ले जाकर सुग्रीव के पास जाते हैं सुग्रीव से मिलने के उपरांत वह उनके दुख दूर करने हेतु बाली का वध करके उनकी पत्नी तारा को उनसे छुड़वाते हैं और सुग्रीव का राजतिलक कर बालिका वध कर देते हैं। सुग्रीव की अपनी सेना को आदेश देते हैं कि वह लंका पर आक्रमण कर दें परंतु समुद्र उसे पर जाने हेतु मार्ग नहीं बन पाता तब प्रभु श्री राम मार्ग पूजन कर, रामेश्वरम स्थापना कर लंका पर आक्रमण कर देते हैं राम और रावण सेवा में भयंकर युद्ध होता है अनेक अनेक रक्षा मेघनाथ कुंभकरण नारायण तक इत्यादि का वध करने के उपरांत प्रभु श्री राम अंत में रावण का वध करते हैं और इस तरह असत्य पर सत्य की विजय होती है। चंचल, चपल अनुज लक्ष्मण का स्वभाव हठी है साथ ही सीता जी का कोमल हृदय इस कहानी को गति प्रदान करता है। कहानी में हनुमान जी का आगमन इस प्रस्तुति को पूर्ण करता है। राम-सीता का विवाह इस कहानी में श्रृंगार रस का संचार करता है। श्रीराम जन्म से लेकर धनुष यज्ञ व सीता स्वयंवर तक का यह प्रसंग कथक के रंगों व उ०प्र० के लोक नाट्य 'नौटंकी' विधा पर केन्द्रित है। नाट्य प्रस्तुति में यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि मानवता को ही धर्म मानने वाले प्रतीक पुरुष वीतरागी 'श्रीराम' का जीवन कठिन अवश्य था पर उसमे समाज के प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण हेतु मूलमंत्र था। धनुषयज्ञ तक की सम्पूर्ण लीला को सविस्तार वर्णित किया गया है, जिसमें दर्शाया गया है कि कैसे प्रभु श्रीराम त्रेतायुग में वो सारे संदेश दे चुके थे जो कलयुग के कल्याणार्थ थे। प्रभु अपनी लीला रचते हुए समाज को गंगा सफाई अभियान, स्वच्छता अभियान, माता पिता की सेवा, किन्नर समाज का सम्मान, राजा का प्रजा के प्रति उदार स्वभाव, बड़े छोटों का आदर जैसे अनेकानेक संदेश देते हैं। पिता के वचनों को सर्वोपरि रखना व भाई के प्रति भाई का समर्पण जैसे अनगिनत विचार व भावों को उद्घाटित किया गया है। इस मंचन में अनेकानेक प्रयोग व अनुप्रयोग किये गए है जो कि एक अलग दृष्टि से देखने की अनुभूति देता है। इस भव्य नौटंकी प्रस्तुति की *परिकल्पना, लेखन, संगीत व निर्देशन अमित दीक्षित 'रामजी'* द्वारा बड़े ही भावपूर्ण व सधे ढंग से किया गया है। उन्होंने इस नौटंकी प्रस्तुति को प्रयोगात्मक व संगीतमय ढ़ंग से एक अलग रूप में प्रस्तुत किया है। 60 कलाकारों की भव्य संगीतमय प्रस्तुति एक अनूठी मिसाल कायम करेगी, इस प्रस्तुति में श्रीराम की भूमिका में नैतिक सिंह , सीता जी अवंतिका शर्मा, लक्ष्मण निशांत पांडेय, नारद शुभ्रेश शर्मा, शिव जी शिवदीन सिंह, रावण अभिजीत सिंह, बाणासुर शिवम पाल , नटी किर्ति चौरसिया, छवि श्रीवास्तव, तूलिका, नट अनूप शर्मा,संजय शर्मा, नट मण्डली सिखा श्रीवास्तव,अन्नू, मानसी, संतोषी, कौशल्या एक कीर्तिका श्रीवास्तव, कौशल्या दो तनुजा ओली सनवाल, राजा जनक अंबुज अग्रवाल, रानी सुनैना सुमन जाजू, राक्षस अभिषेक, सत्यांश, उद्भव, मोहित,उज्ज्वल, मुनि कृष्ण कुमार पांडेय, राजेश गुप्ता, संजय शर्मा, विश्वामित्र गिरिराज शर्मा, छबीला अभिषेक शर्मा, सखियाँ छवि श्रीवास्तव, संतोषी, छवि श्रीवास्तव, राजा की भूमिका में सत्याश, संजय शर्मा, मोहित, अंश, अभिषेक, उद्भव, मोहित, कृष्ण कुमार पांडेय, कासिफ खान, भानु प्रताप, संदीप यादव ने निभायी। गायन मण्डली मे पंकज सत्यार्थी, अनूप, अमित सिंह, कीर्ति, शुभ्रेष, मोहित, उद्भव, अभिषेक, शिवम थे। इस प्रस्तुति में नृत्य संरचना प्रिया चंद, आस्था मिश्रा व नृत्य प्रिया चंद, आस्था मिश्रा, नैना श्रीवास्तव, आरोही, कशिश ने निभाई। मंच परे हारमोनियम इलियास खान, ऑर्गन अरविंद वर्मा, नक्कारा मो० सिद्दीक़, तबला मो. इलियास, शहनाई मो० रफ़ी, ढोलक मुन्ना खान व वस्त्र विन्यास कीर्तिका श्रीवास्तव, मुख सज्जा राकेश सैनी, मंच सज्जा आशुतोष विश्वकर्मा ने किया व परिकल्पना, लेखन, संगीत व निर्देशन अमित दीक्षित 'राम जी' द्वारा किया गया।

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