कविता का शीर्षक
यात्रा
यात्रा अनोखी, संसार अनोखा,
संगी साथी का साथ,
सफ़र की हो गई शुरूआत,
एक स्थान से दूसरे स्थान,
इस सफ़र का है विराम। (1)
घूमें हमने सारे,
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च
घूमें ऐतिहासिक स्मारक,
फिर भी कहीं नही पाया,
अपने आप को हमने। (2)
किया बख़ान,
घूम आये सारा राजस्थान, भारत, विश्व, .......
सुकून कही नही मिला,
जब झांका अपने अंदर,
चिरस्थायी शांति थी,
शांत समुद्र, असीम शांति। (3)
कवयित्री डॉ नम्रता जैन
उदयपुर राजस्थान