131 वें दशहरा मेले के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कविता को तरसे श्रोता
131 वें दशहरा मेले के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कविता को तरसे श्रोता
बारां डोल मेला के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की फूहड़ता की चर्चा अभी शांत भी नहीं हुई थी कि प्रदेश के सबसे बड़े दशहरा मेले के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ने एक बार फिर काव्य रसिकों को निराश कर दिया। दशहरे मेले के इतिहास के सबसे छोटे कवि सम्मेलन पर श्रोताओं की आक्रोशित टिप्पणियां इसकी साक्षी है।
साढ़े चार घंटे की रिकार्डिंग में से एक घंटा स्थानीय उद्घोषक की भूमिका का निकालने के बाद लाखों रुपए का खेल मात्र साढ़े तीन घंटे में समाप्त हो गया।
साहित्य रसिक श्रोता जिस आयोजन की प्रतीक्षा पूरे वर्ष किया करते थे उसमें देश के प्रसिद्ध कवियों के नाम सामने आते ही लोग सीचने लगे कि आने वाले कवियों में कोई ओज का हिमालय है तो कोई गीत ऋषि सम्मान से सम्मानित चार लाइन का गीतकार है कोई सेलिब्रिटी है तो कोई हास्य का हरियाणा है कोई भोला है तो कोई चतुर है। बड़ों आशा के साथ अपनी निशा साहित्य के नाम करने का भाव लिए जो काव्य रसिक श्रोता इन सिद्ध और प्रसिद्ध को सुनने के लिए बैठे उनकी टिप्पणियां बता रही थी कि उनकी निराशा किस सीमा तक पहुंच गई थी।
एक राजनैतिक दल के प्रचारक सा संचालक कविता तो कुछ पढ़ नहीं सका हां श्रोताओं की आक्रोशित टिप्पणियों का पात्र अवश्य बन गया। लाईव टिप्पणियों में श्रोता इस कवि सम्मेलन को भाजपा का अधिवेशन बता रहे थे तो कोई लिख रहे थे कि कविता कब होगी बता दीजिए। सरस्वती वंदना के बाद सुदीप भोला की स्तर हीन पैरोडी से प्रारंभ कवि सम्मेलन में संचालक ने नाम मात्र का काव्य पाठ करके हरियाणा के अरुण जैमिनी को बुलाया जिसकी रटी स्टाई हरियाणवी के अतिरिक्त कुछ नहीं था जिसमें महिलाओं पर किए गए कटाक्ष कविता का चीर हरण कर रहे थे। कोटा के जगदीश सोलंकी ने अपने स्तरीय काव्य पाठ से कवि सम्मेलन को संभालने का प्रयास किया लेकिन अपनी अस्वस्थता के कारण वह भी कुछ विशेष नहीं कर पाए। एक मात्र कवयित्री अनामिका ने भी अपना श्रेष्ठ देने की कोशिश की, लेकिन मंच पर हो रहे वरिष्ठ कवियों के तेज आवाज के वार्तालाप से वह भी निराश होकर बैठ गई। ओज के हिमालय ने गत वर्ष के काव्य पाठ से अलग एक भी नया शब्द नहीं कहा और अंत में सुरेन्द्र शर्मा ने खुद बैठ कर थोड़े बहुत उठे और कवि सम्मेलन को भी बिठा दिया।
श्रोता पूरे कवि सम्मेलन में दूरबीन लगा कर कविता ढूंढते रहे
विशेष बात यह कि जिस आयोजन में सस्कार और सभ्यता के पक्षधर राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे जो स्वयं भी कविता के रसिक श्रोता है वह भी इन कवियों की रटी रटाई पुरानी कविताएं सुनकर निराश ही हुए होगे। क्या सोच कर निगम इन कवियों का निर्धारण करता है इस कवि सम्मेलन को देख कर विवेक राजवंशी की अविवेकता ही दिखाई दी। हद तो तब हो गई जब गीत ऋषि पंडित प्रदीप सम्मान से सम्मानित एक तथाकथित देश के प्रसिद्ध कवि का क्रम आया तो वह पूरे समय मोबाइल और लाईव प्रसारण व रिकार्डिंग को बंद करने के लिए ही हड़काते रहे तथा अपनी प्रस्तुति के नाम पर औशी वाणी तथा प्रवचन देते रहे बाद में चार छह पंक्तियों का प्रवचन संचालक के विशेष आग्रह पर करके
अपनी जगह बैठते नजर आए। साहित्य के रसिक श्रोताओं की माने तो उनके अनुसार निगम द्वारा ऐसे कवियों पर लाखों रुपए
लुटाने से तो अच्छा है कि हाड़ौती के स्थानीय कवियों को ही बुला लिया जाता जिनके पास श्रेष्ठ साहित्य भी है और प्रस्तुति भी या फिर ऐसे आयोजनों को बद करके जनता के पैसे की बर्बादी को रोक देना चाहिए।
इस कवि सम्मेलन के सबसे महंगे पद्मश्री कवि द्वारा साला शब्द का अमर्यादित प्रयोग तथा कोटा की लाइफ लाइन कोचिंग का मजाक बनाना इस कवि सम्मेलन का सबसे बुरा पक्ष रहा जिसे शिक्षा मंत्री चुप बैठ कर सुनते रहे। दूसरे की बार-चार लाइन चुराकर पढ़ने का आरोप लग जाने के कारण वह पद्मश्री फिर अपना बोरिया बिस्तर जल्दी ही समेटता नजर आया।
श्रोताओं की जागरूकता, कविता की रसिकता और सतर्कता के कारण अब ऐसे कवियों का छद्म आवरण उतरता जा रहा है लेकिन राजनैतिक संरक्षण के कारण यह लाखों का चूना लगाने में सफल हो जाते हैं परन्तु यह कहानी अब ज्यादा लम्बी चलने वाली नहीं है।