ग़ज़ल - हमें हमारी जाति बताकर आपस में जो लड़ा रहा है ......
हमें हमारी जाति बताकर...आपस में जो लड़ा रहा है |करो तिरस्कृत उस नेता को....वर्गभेद जो बढ़ा रहा है ||ये सारे नेता भारत के......और हिन्दू समाज के विष हैं,जो हमको भड़का के अपने हित का साधन जुटा रहा है ||इनसे पूछो.....किसी यंत्र के क्या सब पुर्जे एक जैसे हैं,कैसे फिर सारे लोगों को....एक समान ये बता रहा है ||सबकी अपनी ख़ास योग्यता सबका अपना एक महत्व है,जिसको जैसी मिली योग्यता..जिम्मेदारी निभा रहा है ||वोट जुटाने की ख़ातिर ये.....तोड़ रहा केवल हिन्दू को,मुस्लिम में भी जाति–भेद है उसे धूर्त ये छिपा रहा है ||मुस्लिम तुष्टीकरण नीति से उनका वोट लक्ष्य है इनका,और तोड़कर कुछ हिन्दू को जुगत जीत की बिठा रहा है ||पद और सुविधा मिल जाने पर लूट–गवन भी करता है ये,कोई चारा चोरी........कोई टोंटी – टाइल चुरा रहा है ||कोइ शराब का करे घोटाला...कोई डकैती और बकैती,लूट–लूट कर जनता का धन बड़ी कोठियाँ बना रहा है ||देशद्रोहियों और गद्दारों.........से भी ये समझौते करते,आतंकी और अपराधी से....भी ये रिश्ता निभा रहा है ||शांत–सरल हिन्दू को और हिन्दुत्व वाद को गाली देकर,ईसाई – इस्लाम धर्म में.....यह भारत को डुबा रहा है ||रचनाकार - अभय दीपराज सम्पर्क - 9893101237