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ग़ज़ल - बचना है तो एक बनो तुम ......

बचना है तो एक बनो तुम...............गर बिखरे काटे जाओगे |
दुश्मन की ये कुटिल चाल है.........सोचोगे तो समझ जाओगे ||

जो हैवानी ताक़त तुमको................. मिटा रही है धीरे – धीरे,
वक़्त बहुत कम आज बचा है.......जब अस्तित्व बचा पाओगे ||

अपने बीच बहुत से उनके हैं दलाल........और दुश्मन अपने,
जिनको तुम अपना बाहर से............भीतर से दुश्मन पाओगे ||

वो जो मानवता के दुश्मन................मानवता को रौंद रहे हैं,
अगर एक बनकर तुम उनसे..............जूझोगे, टकरा पाओगे ||

आज हमारे त्योहारों पर..................वो जो पत्थर फेंक रहे हैं,
ये उनका ऐलान – ए - युद्ध है.....समझोगे तो समझ जाओगे ||

आँख खोलकर आस – पास के.....देशों का घटनाक्रम देखो,
एक दिन तुम भी इस घटना को......अपने घर घटता पाओगे ||

पिछड़ा-दलित और वनवासी होना कवच न होगा उस दिन,
बौद्ध – जैन और सिख भी सारे, उस दिन हिन्दू कहलाओगे ||

अपने घर की बहन – बेटियों....माँओं की लुटती अस्मत का,
अपनी आँखों को तुम उस दिन, वो मंज़र फिर दिखलाओगे ||

बहुत बार यह दानवता का......भीषण ताण्डव देख चुके तुम,
कितनी बार और ये ताण्डव तुम फिर ख़ुद को दिखलाओगे ||

जागो – जागो हिन्दू बनकर........एक बनो हुँकार भरो तुम,
अगर एक तुम हो न सके तो...निश्चित ही तुम मिट जाओगे ||

रचनाकार - अभय दीपराज
सम्पर्क - 9893101237

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