जिम vs व्यायामशाला
*पूर्व की व्यायामशाला आज जिम बन गयी है /नवयुवक सुबह और शाम जिम मे पसीना बहाते देखे जा सकते है /ये सम्पूर्ण कसरत वह शारीरिक सौंदर्य व बल के लिए करते है /मनोभाव के कमजोर ये युवा फूली गेंद की भांति महज उछल कूद करते दिखाई पड़ते हैं / वैचारिक दरिद्रता से त्रस्त ये नवयुवक पसीने को पानी की तरह बहा देते है / 100 मीटर चलने से परहेज करने वाला नवयुवक जिम के अंदर एक किलोमीटर की दौड़ लगाता है / जहां एक और घर पर काम करने में शर्म महसूस करने वाला नवयुवक जिम के अंदर 80 किलो का भार उठाता दिखाई पड़ता है/चाउमीन, बर्गर, पिज़्ज़ा, मोमोज़, पेटीज जैसे व्यंजनों का चटकारा युवाओं को फौरी आकर्षित कर लेता है जिस कारण पाचन सम्बन्धी विकार आम समस्या बनकर जीवन भर मुसीबत का कारण बन जाता है क्षणिक आवेश आज के युवा की पहचान बन गया है/ सर्व विदित है कि युवावस्था में चेहरे का तेज सूर्य के समान प्रज्वलित होता है/ परंतु आज के जिम ब्वॉय कांतिहीन चेहरे के साथ ऐसे लगते हैं मानो 'लू' ने उन्हें थपेड दिया हो / भैंसों के दूध निकालने में हाथों का व्यायाम, शौच क्रिया में पैरों का व्यायाम आदि प्राकृतिक व्यायाम आज बंद दिखाई पड़ते हैं / एक तरफ तो मनुष्य अपने सहूलियत के समस्त संसाधनों को जुटा रहा है वहीं दूसरी तरफ जिम के अंदर मेहनत करना उसकी नितांत आवश्यकता बन गई है/ कार्यालय में काम करते समय बाबू जी को गर्मी लगने से जरा सी देर में आवेश आ जाता है वहीं दूसरी ओर वही बाबू जी सुबह के समय दौड़ लगाकर अपना पसीना निकालते हैं / पूरा दिन अपने आप को ठंडे परिसर में रखकर हम शिथिल बनाते हैं, तथा सुबह के समय हमारी कोशिश रहती है कि हम जिम के अंदर मेहनत कर अपने शरीर को तरोताजा व स्फूर्तवान बना दें / विरोधाभासी इन कार्यों से पथभ्रष्ट आज के युवा का चेहरा चित्रित होता है/ रात्रि में देर तक जागना तथा विलंब तक सोना जनधारा की आदत बन गई है /**अब इन समस्याओ के उत्पत्ति मे दोष किसका है* *आधुनिकता* *तकनीक* *मानसिकता* *संस्कार* *यह चुनाव लेखक पाठको पर छोड़ता है............*✍️अभिषेक धामा ✍️