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एकांतवास

एकान्तवास
आज के इस भीड़ भाड़ वाले दौर में मनुष्य अपनी आत्मा से दूर हो गया है/ मनुष्य का अपनी आत्मा से संवाद बेहद आवश्यक है / उचित अनुचित का चयन आत्मा के विवेक पर निर्भर करता है / एक समय ऐसा होता है ज़ब मनुष्य बहुत अकेलापन महसूस करता है/ इस अवस्था में वह उलझनों के असीम भंवर में खुद को फंसा हुआ पाता है / खुद से जुड़े लोगों की अपेक्षाएं मनुष्य को बेहद लाचार बना देती है /तब एकांत ही ऐसा साधन है/जिससे मनुष्य अपना पुनरुद्धार कर सकता है/ एकांत के पलों में मनुष्य की आत्मा चिंतन -मनन करके स्वम अपना अवलोकन कर पुर्नसर्जन का कार्य करती है /एकान्त के पलों में यह विचार किया जा सकता है कि विश्वास और समर्पण ऐसी अमूल्य कृति है जिसे सर्वस्व त्याग कर भी रक्षित करना चाहिए/ मनुष्य के जीवन चक्र में घटित होने वाले समस्त घटनाक्रमों पर आत्म मंथन किया जाना परम आवश्यक है यही आत्म मंथन आपको भविष्य में पथभ्रष्ट होने से बचाव कर सकता है / जिस प्रकार गणित में सवाल को हल करने से पहले रफ पेज पर गणना कार्य की जाती है ठीक उसी प्रकार जीवन में कुछ कदम उठाने से पहले एकांतवास के दौरान मानसिक रफ कार्य किया जाना परम आवश्यक है /जिससे सटीक ओर यथार्थवादी परिणाम प्राप्त हो / अतः कुछ समय अपनी आत्मा को दे /जिसका एकमात्र स्रोत है....... (एकांतवास )
✍️अभिषेक धामा

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