इस बार खास है नवरात्र, दो दिन रहेगी तृतीया तिथि
प्रयागराज। 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ हो रहा है और इनका समापन होगा। नवरात्रि के नौ दिनों में मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार, विधि विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है और परिवार के सदस्यों की उन्नति भी होती है। सुबह 6:24 से दोपहर 12:39 बजे तक रहेगा घटस्थापना करने का मूहुर्तपांच व छह को तृतीया जबकि 11 अक्टूबर को होगा अष्टमी व नवमी पूजनकलश स्थापना मुहूर्तनवरात्र को आद्याशक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है। नवरात्र वृद्धि आश्विन शुक्ला प्रतिपदा को अशुभ नक्षत्र चित्रा और वैधृति योग का अभाव एवं शुक्ला तृतीया तिथि की वृद्धि होने से नवरात्र विशेष शुभ एवं राष्ट्र के शत्रुओं का पराभवकारी सिद्ध होगा। घटस्थापन मंदिरों और शक्तिपीठों में सुबह 4:09 से 5:07 तक विशेष शुभ रहेगा। भगवती की पूजा के लिए बनाए गए विशेष पंडालों और घरों में सुबह 6:24से 12:39 तक वृश्चिक लग्न में सामान्य शुभ रहेगा। देवगुरु बृहस्पति की संपूर्ण शुभदृष्टि होने के कारण लग्न बलवती समझी जाएगी।नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्वसवंत्सर (वर्ष) में चार नवरात्र होते है। चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी पर्यंत नौ दिन नवरात्र कहलाते है। इन चार नवरात्रों में दो गुप्त और दो प्रकट, चैत्र का नवरात्र वासंतिक और आश्विन का नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। वासंतिक नवरात्र के अंत में रामनवमी आती है और शारदीय नवरात्र के अंत में दुर्गा महानवमी इसलिए इन्हें राम नवरात्र और देवी नवरात्र भी कहते है। किंतु शाक्तों की साधना में शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है। इसी कारण बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्यतः शारदीय नवरात्र में ही होती है। ऋृग्वेद में शारदीय शक्ति दुर्गा पूजा का उल्लेख मिलता है। बंगाल में विशाल प्रतिमाओं में सप्तमी, अष्टमी और महानवमी को दुर्गापूजा होती है। जगन्माता को यहां कन्या रूप से अपनाया गया है, मानो विवाहिता पुत्री पति के घर से पुत्र सहित तीन दिन के लिए माता-पिता के पास आती है। मां दस भुजाओं में दस प्रकार के आयुध धारण कर शेर पर सवार होकर, महिषासुर के कंधे पर अपना एक चरण रखे त्रिशूल द्वारा उसका वध कर रही होती है। शारदीय शक्ति पूजा को विशेष लोकप्रियता त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र के अनुष्ठान से भी मिली। देवी भागवत में भगवान श्रीरामचंद्र द्वारा किए गए शारदीय नवरात्र के व्रत तथा शक्ति पूजन का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अनुसार, श्रीराम की शक्ति पूजा सम्पन्न होते ही जगदंबा प्रकट हो गई थीं। शारदीय नवरात्र के व्रत का पारण करके दशमी के दिन श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। रावण का वध करके कार्तिक कृष्ण अमावस्या को श्रीरामचंद्र भगवती सीता को लेकर अयोध्या लौट आए।