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नरसिंह मंदिर में 375 साल से बावड़ी का आधा पानी खारा, आधा मीठा

| गंजबासौदा
375 साल पुरानी बावड़ी का आधा पानी खारा
और आधा मीठा... बात सुनने में अटपटी भले
लगती हो, लेकिन हकीकत है। यह प्राचीन
बावड़ी है ग्राम बेदनखेड़ी के नरसिंह मंदिर में
यहां के लोग इसका पानी आज भी पीते हैं। कई
लोग बावड़ी में उतरकर पानी को लकड़ी से
मिलाने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन उसका
स्वाद मीठा और खारा ही रहता है।
बावड़ी का निर्माण संवत् 1811 में किया गया
था, यानी 375 साल पहले चार पीढ़ियों से ऐसा
ही पानी देख रहे हैं। मंदिर के पुजारी महेश बैरागी
महाराज ने बताया कि निर्माण के समय से ही
बावड़ी का आधा जल खारा और आधा मीठा
है। खास बात यह है कि दोनों पानी आपस में
मिश्रित भी नहीं होते। बावड़ी में जैसे ही प्रवेश
करते हैं तो दाईं ओर की दीवार के पत्थरों में
गलन दिखाई देता है। उनके ऊपर अंगुली
घिसकर चखते हैं तो नमक जैसा स्वाद लगता
है, जबकि बावड़ी के बाईं ओर दीवार के पत्थर
पूरी तरह ठीक हैं, उनमें गलन के निशान नहीं है।
खारापन नहीं है।
नपा उपाध्यक्ष संदीप ठाकुर ने बताया कि
बावड़ी के ऊपर ही भगवान नरसिंह का मंदिर
है। उसके नाना और उनके पूर्वज ने मंदिर का
निर्माण कराया था। हमने बचपन से बावडी के
जल के चमत्कारिक होने की बात सुनी थी।
पठारपुरा निवासी वीर विक्रमादित्य माथुर ने
बताया कि वह कई सालों से नरसिंह मंदिर में
दर्शन करने आ रहे हैं। पहले उन्होंने इसको मन
का भ्रम समझा, लेकिन बाद में लोगों ने भी
इसकी पुष्टि की। इस साल बावड़ी आधी भरी
है। इसके बाद भी पानी में अंतर नहीं आया।
एक्सपर्ट व्यूः दोनों बावड़ी के जल की होनी चाहिए जांच
यहीं पर है मीठे और खारे पानी की झील ।
गंजबासौदा की इस लोकेशन पर सैंडस्टोन चट्टानें हैं।
इनमें आड़े फ्रैक्चर्स और ज्वाइंट्स हैं। इस तरह के ज्वाइंट
में भूजल का मूवमेंट तेजी से हो सकता है। एक तरफ की
कुएं की दीवार में खारापन होने से ये स्पष्ट है कि एक
तरफ के सैंडस्टोन में लवण अर्थात खारे मिनरल्स का
जमाव है, जो पानी के साथ बावड़ी में आता है, जो एक
अधिक सांद्रता का और अधिक घनत्व का सॉल्यूशन
बना रहा है। वहीं दूसरी तरफ से आ रहे शुद्ध भूजल में
मिश्रित नहीं हो पाता। इसी कारण बावड़ी में दो तरह के
भूजल की उपलब्धता है। वैसे बावड़ी के दोनों तरह के
पानी के अलग-अलग सैंपल लेकर उनकी जांच की जानी
चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह पानी
मानव स्वास्थ्य पर क्या असर डाल सकता है।
-सुधींद्र मोहन शर्मा, पूर्व राष्ट्रीय नोडल अधिकारी,
पेयजल सुरक्षा, भारत सरकार

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