जाति,धर्म,वोट बैंक देखकर होती मुठभेड़ (इनकाउंटर ),सरकार पर उठाती सवाल
एक समय था जब बीहड़ और जंगलों में डाकुओं को पकड़ने के लिए पुलिस डेविस देती थी या घेरती थी तो ओ पोलिस पर गोलियां चला देते थे फिर जवाबी करवाई में पुलिस भी गोलियां चलती थी जिसमे दोनो तरफ से लोग लोग घायल होते या मारे जाते थे
लेकिन इसी को फिर छोटे अपराधी भी दोहराने लगे और फिर पुलिस ने इसे अपने पक्ष में कर लिया किसी बदमाश या अपराधी का जब आतंक ज्यादा बढ़ जाता तो उसे घर से उठाकर किसी सुनसान इलाके में ले जाकर मार गिराते थे और वह पुरानी चोरी की गाड़ी और एक कट्टा दिखा देते की पुलिस पर हमला किया जवाबी करवाई में मारा गया ,जनता और मीडिया भी बहुत हस्तक्षेप नहीं करती क्युकी मारा जाने वाला अपराधी ही होता था जनता भी सोचती मुक्ति मिली,
लेकिन बाद में धीरे धीरे नेता मंत्री यहां तक की सरकार खुद इसे अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने लगी और मुठभेड़ सवाल के दायरे में आने लगा ,सरकार खुद वोट बैंक देखकर छोटे अपराधियों को मुठभेड़ में मरवाने लगी और बड़े अपराधी मंत्री सांसद बनने लगे और फर्जी मुठभेड़ की प्रथा चल पड़ी जो आज भी कायम है , घर से उठा लेजाना और गोली मार कर मुठभेड़ दिखा बता देना ,जिससे लोगो को पुलिस प्रशासन और उसके मुठभेड़ से विश्वास खतम हो गया ,क्युकी ये विश्वशनीय रह ही नहीं गया ये भी अब जाति धर्म मजहब आधारित हो गया , और सरकार की भी अब इसमें मिलीभगत हो गई है,
समय रहते न्यायालय ,मीडिया और जनता को इस फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ आवाज बुलंद करना होगा नही तो ऐसे ही समर्थ लोग संविधान और कमजोर की जान से खेलते रहेंगे ,जो की लोकतांत्रिक देश और समाज दोनो के लिए खतरनाक है ,संविधान और अपराध में फर्क बना रहना चाहिए,तब देश में सौहार्द और समरसता बनी रहेगी प्रशाशन भी अगर तालिबानी नीति पर चलने लगेगा तो देश का भविष्य क्या होगा ,देश के हर नागरिक को सोचना होगा तभी इस फर्जी मुठभेड़ की नीति का समापन होगा....
ऋषि समीर लखनऊ