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सुलगता देश का पूर्वी कोना मणिपुर

पिछले साल मई महीने से मणिपुर अशांत है। कुकी और मैतेई समुदायों के बीच बढ़ चुके संघर्ष में कम से कम 2 सौ लोगों की मौत हो चुकी है और हज़ारों लोग बेघर हुए हैं। अशांति और हिंसा के इस माहौल में सामान्य जनजीवन पूरी तरह बर्बाद हो गया है और महिलाओं, बच्चों की जो दुर्दशा हुई है, वह कल्पना से परे है। अगर देश में मजबूत इरादों वाली सरकार होती तो अब तक मणिपुर में हालात संभालने के ठोस उपाय किए जा चुके होते। इन उपायों में राष्ट्रपति शासन से लेकर मुख्यमंत्री का इस्तीफ़ा, सरकार की बर्खास्तगी या खुद प्रधानमंत्री का मणिपुर जाकर स्थिति समझने की पहल करना शामिल हो सकता था। लेकिन अफ़सोस कि इनमें से एक भी उपाय नहीं किया गया और अगर केंद्र सरकार किन्हीं अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है, तो इसकी जानकारी देश को नहीं है।

फ़िलहाल यह नज़र आ रहा है कि 16 महीने से हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर के लोगों को उनके हाल पर केंद्र सरकार ने छोड़ दिया है। कहने को वहां राहत शिविर भी बनाए गए हैं, सैन्य बलों की तैनाती भी हुई है, पीड़ितों को मुआवजा भी दिया गया है, लेकिन इन सबके बावजूद जिस चीज की वहां सबसे अधिक जरूरत है, यानी शांति और आपसी सद्भाव की, वो सिरे से नदारद है। 2023 से 2024 आ चुका है, जिसके आठ महीने बीत चुके हैं, लेकिन मणिपुर में हिंसा की घटनाएं बीतने का नाम ही नहीं ले रही हैं। अभी फिर राज्य में हिंसा की नयी लहर उठी है, जिसमें सितंबर के 10 दिनों में 11 मौतों की ख़बर है। इन्हें मौत न कहकर हत्या कहें, तो शायद हालात की गंभीरता का अंदाज़ा लगे।

किसी भी संवेदनशील समाज में इस बात से रोंगटे खड़े हो सकते हैं कि एक राज्य में 10 दिन में 11 हत्याएं हो गईं, लेकिन राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार इस संवेदनशीलता से कोसों दूर दिखाई दे रही है। पिछले सप्ताह मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने छह महीनों के भीतर शांति लाने का दावा किया था, लेकिन मौजूदा हालात उनके दावों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। जो काम पिछले एक साल में नहीं हुआ, वो अगले छह महीने में कैसे होता, इसका खुलासा मुख्यमंत्री ने नहीं किया। लेकिन हक़ीक़त ये है कि सितंबर महीने में मणिपुर में ड्रोन और मिसाइल के हमले से लेकर हथियारबंद समूहों के बीच गोलीबारी जैसी भयावह घटनाएं हुई हैं।

इस रविवार को ही कुकी समुदाय से आने वाले सेवानिवृत्त सैन्य जवान लिमखोलोई माटे की हत्या केवल इसलिए हो गई क्योंकि अपने दोस्त को लीमाखोंग छोड़ने गए और लौटते में वे कुकी और मैतेई इलाकों के बीच बफ़र ज़ोन से गुजरे। इसी बात पर उन पर हमला कर दिया गया कि उन्होंने कुकी और मैतेई के बीच हो चुके भौगोलिक बंटवारे का उल्लंघन कर दिया। इस घटना से समझ आता है कि राज्य में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच नफ़रत कितनी बढ़ चुकी है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के तथाकथित शांति प्रयासों में इस समस्या को लेकर कोई चिंता नहीं दिखाई पड़ती है।

राज्य में हिंसा के ताजा दौर के बाद इंटरनेट पर पाबंदी और कर्फ़्यू जैसे उपाय अपनाए गए हैं। इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिमी जिलों में अनिश्चितकालीन कर्फ़्यू लगा है, वहीं 15 सितंबर तक इंटरनेट बंद कर दिया गया है। राज्य में अतिरिक्त सैन्य बल की तैनाती हो गई है और स्कूल-कॉलेज सब बंद हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 27 जून को संसद में अपने अभिभाषण के दौरान कहा था कि मेरी सरकार पूर्वोत्तर में स्थायी शांति के लिए निरंतर काम कर रही है। पिछले 10 साल में अनेक पुराने विवादों को हल किया गया है। अब श्रीमती मुर्मू को देश को यह भी बता देना चाहिए कि उनकी सरकार के मुताबिक स्थायी शांति की परिभाषा क्या है और इसके मानक क्या हैं।

क्या दो समुदायों के बीच अपने सुविधा के हिसाब से भौगोलिक सीमाएं बनाकर एक का दूसरे में प्रवेश वर्जित करना शांति के दायरे में आता है। क्या इंटरनेट प्रतिबंध और कर्फ़्यू शांति काल की पहचान हैं। राज्य के हज़ारों बच्चों को पढ़ने के अवसर नहीं मिल रहे हैं, क्योंकि शैक्षणिक संस्थान बंद हैं। व्यापारिक प्रतिष्ठानों के काम में अड़चनें आ रही हैं। दैनंदिन जीवन सैन्य निगरानी के साये में बीत रहा है। क्या ये सब पुराने विवादों के हल होने की निशानी है या विवादों को चुपचाप भड़कने देने की कायरता है। राष्ट्रपति महोदया क्या अपने अगले संबोधन में देश को इन सवालों के जवाब देंगी।

प्रधानमंत्री मोदी हाल में कई देशों के दौरे पर जा चुके हैं और हर जगह उन्होंने अपनी सरकार की बड़ाई की। श्री मोदी इस समय रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रोकने के लिए भी काफी मेहनत करते दिख रहे हैं। उन्होंने हाल में रूस और यूक्रेन दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों से हाथ मिलाकर साथ देने का वादा भी किया है। लेकिन क्या श्री मोदी अब थोड़ा वक़्त मणिपुर जाने के लिए निकालेंगे। मणिपुर की पूर्व राज्यपाल अनुसूइया उईके ने कहा है कि मणिपुर के लोग इस बात से निराश हैं कि श्री मोदी उनके बीच नहीं आए। क्या नरेन्द्र मोदी इस बात में छिपी चिंता को समझेंगे।

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