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*शिक्षक दिवस की बधाई देने से पहले यह भी पढ़ लें तो ठीक रहे* शिक्षक दिवस पर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के इस रूप को देखिए:

*शिक्षक दिवस की बधाई देने से पहले यह भी पढ़ लें तो ठीक रहे*

शिक्षक दिवस पर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के इस रूप को देखिए:
* इन्हें #भारतरत्न भी मिला है, वैसे ये अलग बात है कि भारतरत्न तो और भी बहुत लोगों ने खुद को ही दे लिया था,यह सब चलता रहता है।
* आजादी के बाद आने वाली पीढ़ियों को गुमराह करने के लिए तमाम झूठे प्रतीक गढे गये हैं..#चरखे से मिली आजादी से लेकर नेहरू के बलिदान और महान दार्शनिक राधाकृष्णन तक।
* #शिक्षक_दिवस भी इसी का हिस्सा है, जीवन भर ब्रिटिश राज की और उसके बाद गांधी नेहरू की गुलामी करने वाले डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कोई ऐसा कार्य बताओ जिस पर गर्व किया जा सके ?
* हाँ एक कारनामा ये है कि जहां अंग्रेजो ने लाखों क्रांतिकारियों की हत्या की वहीं इन जनाब को #सर की उपाधि जरूर दी।
* दूसरा कारनामा ये है कि जैसे नेहरू ने खुद को भारतरत्न दे लिया था ठीक ऐसे ही #राष्ट्रपति पद पर रहते हुए इन्होंने भी खुद के नाम पर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस घोषित कर लिया था।
* तीसरा कारनामा ये है महान दार्शनिक और पूर्व राष्ट्रपति जी का, कि जब ये कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे उस समय इनका एक शिष्य #जदुनाथ_सिन्हा भी था। एक होनहार काबिल मेधावी छात्र।

थीसिस चुराकर {इंडियन फिलॉसॉफी} नामक पुस्तक छापी जिसने राधाकृष्णन को काफी प्रसिद्ध कर दिया...

हुआ यूं कि जदुनाथ सिन्हा की थीसिस इनके पास चेक होने आई थी, जिसको चेक करने मे #सर ने पूरे 2 साल लगा दिए।

इन्हीं दो सालों में इन्होंने इंग्लैंड में अपनी किताब “इंडियन फिलॉसॉफी” प्रकाशित करवाई, जो कि जदुनाथ सिन्हा की थीसिस थी।

पूरी की पूरी थीसिस राधाकृष्णन ने छपवा दी बिलकुल हूबहू ...एक कोमा तक का अंतर नहीं है।असल में कोमा का अंतर करने के लिए भी बुद्धि चाहिए जोकि ऐसे लोगों के पास नहीं होती।

जब किताब छप गई तब उस छात्र को #पीएचडी की डिग्री दे दी। मतलब किताब पहले छपी... थीसिस बाद में पब्लिश हुयी। फिर पीएचडी की डिग्री मिली। अब कोई यह भी नहीं कह सकता था कि इन्होंने चोरी की है। अब तो चोरी का आरोप छात्र पर ही लगता।

गरीब जदुनाथ सिन्हा क्या करता, मगर उसने हार नहीं मानी। कलकत्ता हाईकोर्ट में केस कर दिया गया।

छात्र का कहना था, “मैंने दो साल पहले विश्वविद्यालय में थीसिस जमा करा दी थी। विश्वविद्यालय में इसका प्रमाण है। अन्य प्रोफेसर भी गवाह हैं क्योंकि वह थीसिस #तीन प्रोफेसरों से चेक होनी थी – दो अन्य एक्जामिनर भी गवाह हैं। वह थीसिस मेरी थी और इसलिए यह किताब भी मेरी है। मामला एकदम साफ है...इसे पढ़कर देखिए...."

राधाकृष्णन की किताब में अध्याय पूरे के पूरे वही हैं जो थीसिस में हैं। वे जल्दबाजी में थे, शायद इसलिए थोड़ी बहुत भी हेराफेरी नहीं कर पाए।
किताब भी बहुत बड़ी थी- दो भागों में थी। कम से कम दो #हजार पेज। इतनी जल्दी वे बदलाव नहीं कर पाए...अन्यथा समय होता तो वे कुछ तो हेराफेरी कर ही देते।

मामला एकदम साफ था लेकिन छात्र जदुनाथ सिन्हा ने कोर्ट के निर्णय के पहले ही केस वापस ले लिया क्योंकि उसे पैसा दे दिया गया था।

मामला #वापस लेने के लिए छात्र को राधाकृष्णन ने उस समय 10 हजार रुपए दिए थे। वह बहुत गरीब था और #दस हजार रुपए उसके लिए बहुत मायने रखते थे। दूसरी बात, राधाकृष्णन जैसो लोगो से पंगे लेना कोई समझदारी का काम भी नहीं था। ऐसे में वास्तविक न्याय की उम्मीद जदुनाथ को नहीं रही।

ऐसे थे हमारे राष्ट्रपति डा. सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन भारतरत्न। इन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना कहाँ तक न्यायोचित है ये निर्णय अपने विवेक से करें।

एक ऐसा व्यक्ति जो #चौर्य कर्म में लिप्त है उसको शिक्षा का प्रतीक बनाकर आजाद भारत के नीति निर्धारको को क्या मिला ? कुछ नहीं बस एक और छोटा सा बेहूदा कदम भारत को नष्ट करने के प्रयास में।

वैसे अपने देश में तो #आषाढ़ मास की पूर्णिमा को शिक्षक-दिवस (#गुरू_पूर्णिमा)होता ही है ।

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