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"वैराग्यरसमंजरी का मर्म: सुख के आभास और वास्तविकता"



अहमदाबाद:- 30 अगस्त 2024 शुक्रवार
गिरधर नगर, शाहिबाग: आज के प्रवचन में श्रद्धेय प.पू. आ.भ. श्रीमद विजय यशोवर्म सूरीश्वरजी महाराजा ने वैराग्यरसमंजरी ग्रंथ के माध्यम से जीवन के महत्वपूर्ण तत्वों पर प्रकाश डाला। प्रवचन के दौरान पूज्यपाद दादा गुरुदेव लब्धि सूरीश्वरजी महाराजा की कही गई वाणी को बताया कि यह संसार के पदार्थ जो हमें सुखमय प्रतीत होते हैं, वास्तव में वे केवल सुख का आभास हैं। जिन विषयों के पीछे हम पागल होकर दौड़ते हैं, वे वर्तमान में आनंद प्रदान कर सकते हैं, लेकिन भविष्य में वही आनंद हमें कठिनाइयों में डाल सकता है।

आचार्य श्री ने यह भी कहा कि पूर्वभव में जिनसे हमारा द्वेष रहा होगा, उन्हें इस जीवन में देखकर भी द्वेष की भावना जागृत हो सकती है, जबकि जिनसे प्रेम किया होगा, उनसे मिलकर प्रेम की भावना उत्पन्न होती है। उन्होंने सुझाया कि जिन लोगों को सुधारना संभव न हो, उन्हें स्वीकार कर लेना ही सुखी होने का मार्ग है।

उन्होंने संसार को उन स्थानों के रूप में परिभाषित किया जहाँ अनिच्छा से भी पाप करने की स्थिति आ सकती है। प्रवचन में उन्होंने यह भी कहा कि जो व्यक्ति मस्त हो जाता है, उसे कोई त्रस्त नहीं कर सकता। भगवान की पूजा करते समय हमें यह प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रभु, हमें पेड़ा पचाने की ताकत तो आपने दी है, अब कृपा करके इतनी शक्ति दें कि हम किसी की प्रशंसा भी पचा सकें।

प्रवचन में उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि जो व्यक्ति कड़वा बोलता है, उसका शहद भी बिकने योग्य नहीं होता, जबकि मीठा बोलने वाले का मिर्च भी बिक जाता है। जिनको जैनत्व के संस्कार मिले होते हैं, वे किसी अच्छे मित्र को पा सकें या नहीं, लेकिन वे निश्चित रूप से किसी के अच्छे मित्र बन जाते हैं। सज्जनता की परिभाषा देते हुए उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति किसी की इज्जत को हानि पहुँचाने के लिए भी तैयार न हो, वही सच्चा सज्जन होता है।

संवाददाता दिनेश देवड़ा धोका ने आज के प्रवचन का सार प्रस्तुत करते हुए बताया कि आचार्य श्री के वचनों ने श्रोताओं को जीवन के वास्तविक सार और धार्मिकता की महत्ता से अवगत कराया। गिरधर नगर में उपस्थित भक्तगणों ने आचार्य श्री के इस प्रेरणादायक प्रवचन का गहनता से लाभ उठाया।

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