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एक तरफ माँ अपने बेटे को पली अपने पति को बिलख रही होती है और दूसरी तरफ डोडा अफीम मनुहारे चलती है। मारवाड़ में चली आ रही पुराणी परम्परा आज गरीब परिवार के लिए दुविधा बन गयी है।
परिवार में जब किसी की मौत हो जाती है, तो वहाँ 12 दिन तक डोडा अफीम की महफिले चलती है, पैसे वालो के लिए तो ठीक मगर गरीव परिवार को ये महफ़िल कर्जदार बना देती है,
ये एक महफ़िल है जिसमे अफीम लेने की ट्रेनिंग भी दी जाती है,, जिससे ओर अधिक अफीमची (बांधानी) तैयार किया जा सके। जिस इंसान को डोडा दिया जा रहा है, उनके,, भविष्य परिवार, की बिल्कुल भी चिंता नही, कुछ बंधानी ऐसे होते है जिन्हें खुद पीने से नहीं, बल्कि किसी दूसरे को जबरदस्ती पिलाने में ज्यादा स्वाद आता है।
जब वो किसी दूसरे को डोडो की मनवार करता है तब ये भूल जाता है कि हम ये काम किस खुशी में कर रहे है, यहाँ कहाँ बैठे है, ये मारवाड़ की ऐसी परम्परा है जिसका परिवार को आर्थिक नुकसान का पता होते हुए भी समाज या दुःखी परिवार एक्शन नहीं ले सकता, क्योंकि वे भंवर जाल में फंसे महसूस करते है, अगर डोडा अफीम ना दिया तो लोग यहाँ बैठने नही आएंगे या तेहरवीं के दिन मृत्यु भोज जीमने नहीं आएंगे,, समाज मे बेइज्जती हो जायेगी। इसलिए मजबूरन उसे डोडा अफीम की व्यवस्था जुटानी पड़ती है।
कुछ लोग तो इतने निर्दयी होते है कि परिवार में मौत चाहे जवान हो या बुजुर्ग, परिवार पीछे कोई कमाने वाला हो या ना हो, उससे उनको कोई मतलब नहीं, दाह संस्कार के बाद घर पहुँचते ही सर्वप्रथम मनुहार डोडा अमल की होती है, उसके बाद खाने की। और यही प्रक्रिया 13 दिन तक धूमधाम से चलती है।
आज साधु संतो, समझदार पढ़े लिखे लोगो,, यूथ जनरेशन द्वारा,, काफी समाज मे कुरीतियों पर लगाम लगाई जा रही है। सोजत पाली, जोधपुर क्षेत्र में समाजसेवियो द्वारा काफी परिवर्तन किया जा गया है, बाकी लोग भी इनसे सिख ले और नशा मुक्ति को त्याग कर बच्चों की शिक्षा में पैसे लगाए तांकि समाजो का उत्थान हो सके।
इस समस्या को एकदम से समाप्त करना भी बोहत बड़ी समस्या है,, कोई अकेला या आम व्यक्ति इस पर लगाम नहीं लगा सकता,, हा अगर मोसर में डोडा अफीम को लिमिट में रखे,, जो वास्तव में नशेड़ी है, उनको ही दिया जाय वो भी रोजमर्रानुसार। तो नए बन्दे, बंधाणी होने से बच सकते है,, ओर आने वाली पीढ़ी में जब डोडा अफीम लेने वाले ही नहीं होंगे तो ये कुरीति स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।
राजस्थान की सबसे महंगी पगड़ी है!यह किसी शोरूम,दुकान,सुपरमार्केट में नहीं मिलती है200 रुपये की इस पगड़ी को 10 लाख की करके चले जाते है!
जवां बेटे की लाश को कंधा देना बाप के लिए सबसे बड़ा बोझ तो सभी ने सुना है लेकिन कच्चे माथे पर लाखों के इस बोझ पर कभी गौर किया क्या?