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योगीराज भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2024

योगीराज भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2024

लेखक: घेवरचन्द आर्य पाली

हमारे भारत देश की विशेषता और सौभाग्य रहा है कि इसे ऋषि, मुनि, ज्ञानी, तपस्वी प्रेरक महापुरुषों की विरासत व परम्परा मिली है। समय-समय पर महापुरुषों ने इस पवित्र धरती पर अवतरित होकर राष्ट्र एवं जनमानस को आदर्श एवं मर्यादा सिखाकर धर्म के यथार्थ स्वरूप को प्रतिष्ठित किया है। उन्हीं महापुरुषों में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और योगीराज श्री कृष्ण भगवान का नाम बड़ी श्रद्धा सम्मान और पूज्य भाव में लिया जाता है।
पिछले दिनों रामभद्राचार्य जी ने एक ब्यान में कहां था कि स्वामी दयानन्द जी और आर्य समाज भगवान राम और कृष्ण को नहीं मानता जबकि स्वामी दयानन्द जी और आर्य समाज भगवान राम और कृष्ण को जितना मानता है उतना दुनिया का कोई हिन्दू नहीं मानता है। श्रीकृष्ण पुण्यात्मा, धर्मात्मा, तपस्वी, त्यागी, योगी, वेदज्ञ, निरअहकारी, कूटनीतिज्ञ, लोकोपकारक आदि अनेक गुणों व विशेषणों से विभूषित थे। वे मानवता के रक्षक, पालक और उद्धारक थे। उनका उद्देश्य था - धर्मात्माओं की रक्षा करना और पापी, अपराधी, तथा दुष्ट प्रकृति के लोगों का दंडित करना था, जिसमें वे सफल रहे। उन्होंने धर्मात्माओं की रक्षा के लिए अनेक पापीयों का सहारा कर जनता में लोकप्रियता हासिल की।

संसार के इतिहास में श्रीकृष्ण जैसा निराला विलक्षण, अद्धभूत , अद्वितीय, विश्व बंधुत्व जैसा महापुरुष नहीं मिलेगा। यदि किसी महापुरुष में वेद, दर्शन, योग , अध्यात्म, संगीत, कला, राजनीति, कूटनीति आदि सभी एक स्थान पर देखने है, तो वह अकेले देव-पुरूष भगवान श्रीकृष्ण ही है।

महाभारत में अनेक विशेषताओं से युक्त अनेक महापुरुष हुए लेकिन सभी का जन्मदिन नहीं मनाया जाता। हजारों वर्षों के बाद भी श्री कृष्ण का जन्म दिन सबको याद है। जो महापुरुष संसार, मानवता, सत्य-धर्म- न्याय और सर्वेभवन्तु: सुखिन: के लिए जीता और मरता है। वहीं युगों-युगों तक जन-जन का आदर्श एवं लोकप्रिय बनता है। जहां धर्म है वहां भगवान श्रीकृष्ण है और जहां भगवान श्रीकृष्ण है वहां निश्चित ही विजय है।

संसार एवं विशेष कर भारत का दुर्भाग्य है कि श्रीकृष्ण के सत्य स्वरूप और यथार्थ जीवन दर्शन के साथ अन्याय व धोखा हो रहा है। हमारे देश के ही स्वार्थी लोगों ने अपने अल्प स्वार्थ के लिए उनका वास्तविक चरित्र ओझल कर दिया । पुराणों ने श्रीकृष्ण को युवा होने ही नही दिया, चमत्कारी बाल लीलाओं में उनका सम्पूर्ण जीवन अंकित व चित्रित ऐतिहासिक चरित्र को विलुप्त कर दिया है। महाभारत कालीन वेदव्यास रचित ऐतिहासिक धर्म ग्रंथ महाभारत में राधा का कहीं पर नाम ही नहीं आता, किन्तु भागवत पुराण में राधा के बिना श्रीकृष्ण की कल्पना ही नही की जा सकती । पुराणों, लोक कथाओं कहानियों में श्रीकृष्ण के चरित्र को कलंकित व विकृत बदनाम करने के लिए राधा का नाम जोड़ा गया। इतिहास में मिलावट की गयी । श्रीकृष्ण एक ही पत्नीव्रता थे उनकी धर्म पत्नी रूक्मिणी थीं।

हिन्दू समाज योगेश्वर भगवान कृष्ण की मुर्ती बनाकर उसकी धूप अगरबत्ती और नगाड़ों के कोलाहल से पुजा करना ही अपना धर्म समझ रहा है । इससे अधिक वह कुछ सोचता ही नहीं है और न ही उनको सोचने की फूर्सत है। पूजा का तात्पर्य है आज्ञा पालन करना अर्थात जिसकी हम पूजा करते हैं उसके बताये मार्ग का अनुकरण करना ही सच्ची पूजा है । योगीराज भगवान श्री कृष्ण के महान चरित्र को जानकर हम सब अपने जीवन मे अपनाने का संकल्प लें। तभी हमारा श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाना सार्थक होगा। और हम सच्चे अर्थों में भगवान के आज्ञापालन भक्त साबित होंगे।

अब मैं आपको भगवान श्री कृष्ण के महान व्यक्तित्व के बारे में संक्षिप्त में बता रहा हूं उसे पुरा पढ़ें और शिक्षा ग्रहण करें।
1.जुए के विरोधी:-
भगवान कृष्ण के समय राजाओं में जुआ प्रथा प्रचलित थी जबकि श्री कृष्ण भगवान जुए के घोर विरोधी थे। वे जुए को एक बहुत ही बुरा व्यसन मानते थे। जब वे काम्यक वन में युधिष्ठिर से मिले तो उन्होनें युधिष्ठिर को कहा-
आगच्छेयमहं द्यूतमनाहूतोsपि कौरवैः।
वारयेयमहं द्यूतं दोषान् प्रदर्शयन्।।
-(महाभारत वन-पर्व 13/1-2)
अर्थ:-हे राजन्! यदि मैं पहले द्वारका में या उसके निकट होता तो आप इस भारी संकट में न पड़ते। मैं कौरवों के बिना बुलाये ही उस द्यूत-सभा में जाता और जुए के अनेक दोष दिखाकर उसे रोकने की पूरी चेष्टा करता।

2. मदिरा (शराब) के विरोधी:-
आजकल हर शहर एवं गांव में देशी एवं अंग्रेजी शराब की दुकानें खुल गई है । हिन्दुओं की सभी जातियों में शराब का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। जबकि भगवान श्रीकृष्ण मदिरापान (शराब) के घोर विरोधी थे। उन्होंने यादवों के मदिरापान पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और उसका सेवन करने वाले के लिए मृत्यु-दण्ड की व्यवस्था की थी।

अद्यप्रभृति सर्वेषु वृष्ण्यन्धककुलेष्विह।
सुरासवो न कर्त्तव्यः सर्वैर्नगरवासिभिः।।

यश्च नोsविदितं कुर्यात्पेयं कश्चिन्नरः क्वचित्।
जीवन् स कालमारोहेत् स्वयं कृत्वा सबान्धवः।।
-(महाभारत मौसल पर्व 1/29,30,31)

अर्थ:-आज से समस्त वृष्णि और अन्धक-वंशी क्षत्रियों के यहां कोई भी नगरवासी सुरा और आसव तैयार न करे। यदि कोई मनुष्य हम लोगों से छिपकर कहीं भी मादक पेय तैयार करेगा तो वह अपराधी अपने बन्धु- बान्धवों सहित जीवित अवस्था में सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। यह है शराब के बारे में भगवान श्री कृष्ण के विचार।
क्या शराब का सेवन करने वाले और अवैध शराब बनाने वाले हिन्दू इससे शिक्षा ग्रहण करेंगे??

3. गोभक्ति:- भगवान श्री कृष्ण गोभक्त थे। गोपों के उत्सव में हल और जुए की पूजा होती थी। श्रीकृष्ण ने गोपों को समझाया कि वे इसके स्थान पर गौ पूजन करें। हमारे देवता तो अब गौ माता ही हैं, न कि गोवर्धन पर्वत। गोवर्धन पर घास होती है। उसे गाये उसे खाती हैं और दूध देती हैं। इससे हमारा गुजारा चलता है। गोवर्धन और गौओं का यज्ञ करें। गोवर्धन का यज्ञ यह है कि उत्सव के दिन सारी बस्ती को वहीं ले चलें। वहां होम करें। स्वयं खाएं औरों को खिलाएं। इससे पता चलता है कि वे परम गोभक्त थे। हमें भी उनकी तरह केवल गौ पालन करना चाहिए। जबकि आजकल अधिकांश हिन्दू गाय की अपेक्षा विदेशी भैंस का पालन करके भगवान कृष्ण के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं।

4.ब्रह्मचर्य का पालन (एक पत्नी-व्रत):-
महाभारत का युद्ध होने से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा था-
ब्रह्मचर्यं महद् घोरं तीर्त्त्वा द्वादशवार्षिकम्।
हिमवत्पार्श्वमास्थाय यो मया तपसार्जितः।।

समानव्रतचारिण्यां रुक्मिण्यां योsन्वजायत।
सनत्कुमारस्तेजस्वी प्रद्युम्नो नाम में सुतः।।
-(महाभारत सौप्तिक पर्व 12/30,31)
अर्थ:- मैंने 12 वर्ष तक रुक्मिणी के साथ हिमालय में ठहरकर महान् घोर ब्रह्मचर्य का पालन करके सनतकुमार के समान तेजस्वी प्रद्युम्न नाम के पुत्र को प्राप्त किया था। विवाह के पश्चात् 12 वर्ष तक घोर ब्रह्मचर्य को धारण करना उनके संयम का महान् उदाहरण है। ऐसे संयमी और जितेन्द्रियं पुरुष को पुराणकारों ने गोपीयों के साथ रमण करने वाला और 16000 पत्नियों का पति होना लिखकर योगीराज भगवान श्री कृष्ण को कितना वीभत्स और घृणास्पद बना दिया है। पाठक स्वयं आत्मावलोकन करें तो हिन्दूओं का हित ही होगा।

भागवत पुराण में राधा की कल्पना
वृषभानोश्च वैश्यस्य सा च कन्या बभूव ह।
सार्द्धं रायणवैश्येन तत्सम्बन्धं चकार सः।।

कृष्णमातुर्यशोदाया रायणस्तत्सहोदरः।
गोकोले गोपकृष्णांश सम्बन्धात्कृष्णमातुलः।।
-(ब्रह्मवैवर्तपुराण पुराण ४९/३२,३७,४०)
अर्थ:- राधा वृषभानु वैश्य की कन्या थी। रायण वैश्य के साथ उसका सम्बन्ध किया गया। वह रायण यशोदा का भाई था और कृष्ण का मामा था। राधा उसकी पत्नि थी। सो राधा तो कृष्ण की मामी ठहरी। मामी और भांजे का प्रेम-व्यापार कहां तक उचित है ?
पुराणकारो ने योगीराज भगवान कृष्ण के साथ राधा का सम्बंध जोड़कर उनके यथार्थ स्वरुप को ओझल दिया है। उनके पवित्र व्यक्तित्व को घृणित और वीभत्स बना दिया। पाठक स्वंय निर्णय करें। और अपने व्यक्तित्व में सुधार करें ।

आर्य समाज का उदय सत्य के प्रचार - प्रसार और वैदिक धर्म के पुन उद्धार लिए हुआ। आर्य समाज महापुरुषों के उज्जवल, प्रेरक, चारित्रिक, गरिमा की रक्षा का सदा पक्षधर रहा है। आर्य समाज भगवान श्रीकृष्ण के उस विकृत, कलंकित स्वरूप को नही मानता। आर्य समाज उन्हें योगीराज दिव्य गुणों से युक्त महापुरुष मानता व सम्मानित करता है।

योगेश्वर श्री कृष्ण भगवान की जय
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय हो
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