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पेंशन का महत्व

आपको यह समझना होगा कि जिस देश में सामाजिक सुरक्षा के नाम पर शून्य बटे सन्नाटा है, वहां पेंशन का कितना महत्व है। बुजुर्गों के लिए न तो स्वास्थ्य सेवा है और न ही किसी अन्य प्रकार की सुविधा। रेलवे में किराए में छूट मिलती थी, वह भी वापस ले ली गई। ऐसे में सेवानिवृत्ति के बाद आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता के लिए पेंशन बहुत आवश्यक है।

सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन मिले, इससे किसी का विरोध नहीं। उन्हें एक ग्यारंटीड पेंशन मिले, यह भी जरूरी है। बात केवल इतनी है कि उस पेंशन में कर्मचारियों का भी अंशदान हो या न हो। ओपीएस में ग्यारंटीड पेंशन थी तो अंशदान नहीं था। एनपीएस में अंशदान था तो ग्यारंटीड पेंशन नहीं थी। यूपीएस में दोनों हैं। यूपीएस दोनों बातों को सुनिश्चित करती है- इसमें कर्मचारियों का अंशदान भी है और उन्हें ग्यारंटीड पेंशन भी।

सवाल केवल यह है कि निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए भी ऐसी ही कोई योजना क्यों नहीं? ईपीएस में पेंशन के लिए अधिकतम वेतन 15,000 रुपए प्रति महीने और रिटायरमेंट के बाद अधिकतम पेंशन 7,500 रुपए प्रति महीने है। अब प्रस्ताव है कि अधिकतम वेतन बढ़ा कर 21,000 रुपए प्रति महीने कर दिया जाए जिससे पेंशन बढ़ कर 10,050 रुपए प्रति महीने हो जाएगी। लेकिन क्या यह बढ़ी हुई पेंशन भी पर्याप्त होगी?

इसी तरह भारत में रिटायरमेंट की उम्र को लेकर भी एकरूपता नहीं है। सरकारी कर्मचारी 60 साल की उम्र में रिटायर होते हैं जबकि निजी क्षेत्र के कर्मचारी 58-60 के बीच। नेताओं के रिटायर होने की तो कोई उम्र ही नहीं है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के जजों के रिटायर होने की उम्र 65 वर्ष तो वहीं हाई कोर्ट के जजों के रिटायर होने की उम्र 62 वर्ष है।

अगर दूसरे देशों से तुलना की जाए तो भारत में निजी और सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों के रिटायर होने की उम्र सबसे कम है। जबकि ऑस्ट्रेलिया, यूके, इटली, कनाडा, स्पेन, इटली जैसे देशों में 65 से 67 है।

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