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देश संविधान से चलेगा या भाजपा के फ़रमान से

भारत में पिछले कुछ वर्षों में बुलडोज़र की राजनीति का उभार स्पष्ट रूप से देखा गया है, जहाँ प्रशासनिक कार्यवाही के नाम पर कई स्थानों पर लोगों के घरों, दुकानों और संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है। विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों, के खिलाफ यह कार्यवाही एक नया विवाद खड़ा कर रही है।

छत्तरपुर, मध्यप्रदेश की घटना में कांग्रेस नेता शहज़ाद अली का आलीशान बंगला तोड़ने की खबर ने इस पूरी स्थिति पर एक नया सवाल खड़ा कर दिया है: क्या भारत संविधान से चल रहा है या भाजपा के फ़रमान से चल रहा है ?

इस प्रकार की घटनाएँ यह संकेत देती हैं कि भारत का मुस्लिम समुदाय एक "सॉफ्ट टारगेट" बन गया है। जिस प्रकार बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हुए तथाकथित अत्याचार को लेकर घड़ियाली आँसू बहाए जा रहे थे लेकिन भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और अन्याय को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है ।

बुलडोज़र राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि इसे न्यायिक प्रक्रिया के बिना, केवल प्रशासनिक शक्ति के रूप में उपयोग किया जा रहा है। जब बिना उचित प्रक्रिया के किसी की संपत्ति को नष्ट किया जाता है, तो यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह नागरिकों में असुरक्षा और भय का वातावरण पैदा करता है।

अतीत में भी जब-जब किसी समाज में न्याय की आवाज़ को दबाया गया है, तब-तब उस समाज में अशांति और हिंसा का उभार हुआ है। यह समझना आवश्यक है कि जहाँ न्याय की रक्षा नहीं होगी, वहाँ शांति की उम्मीद करना बेमानी है।

आज मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है, तो कल यह किसी और समुदाय पर भी हो सकता है। इसलिए यह समय है कि समाज के हर वर्ग को एकजुट होकर इस प्रकार की राजनीति का विरोध करना चाहिए, ताकि न्याय और संविधान का सम्मान बना रहे और देश में शांति और सौहार्द बना रहे।

इस समय देश में धार्मिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक एजेंडा के तहत हो रही घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि देश का शासन संविधान के अनुसार चले, न कि भाजपा के फ़रमान के अनुसार। अन्यथा, जिस दिन न्याय का गला घोंटा जाएगा, उसी दिन अमन और शांति की बुनियाद भी हिल जाएगी।

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