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राम नाम सत्य है।

बहुत बड़ा पद, बहुत बड़ी बखरी, बहुत बड़ी गाड़ी पाने के चक्कर में जीवन के अनमोल समय को गँवा दिए। रामायण के पाठ करवाये खुद नहीं किये क्योंकि बड़े आदमी थे। गीता जी कभी पलट के देखी नहीं क्योंकि वो समझ में नहीं आती थी। सत्संग में कभी गये नहीं क्योंकि सब के साथ नीचे बैठना पड़ता। बड़े मनई होने के गुमान ने जीवन से सहजता छीन ली। अब आयी बुढ़ापे की बारी तो कुछ करने की हिम्मत ही ना रही। पुराने दिनों की कहानियो में झूठ मिला कर सब गप्प सुनाते। मनुष्य जीवन का पाना व्यर्थ हो गया। सुबह उठे तो पता चला की बब्बा तो टें बोल गये। अब कफ़न में लिपटे चार कंधो पर लेट कर जा रहें हैं। न पद न बखरी न बड़की गाड़ी साथ गई। पीछे चलने वाले बोल रहें हैं राम नाम सत्य है, लेकिन वो सुनने के काबिल नहीं रहें। जहाँ चोरई, कलगूंडू, धुंकू सफ़ेडू का संस्कार हुआ था वहीं उनका भी हुआ। सब यहीं रह गई झूंठ की जिंदगी। कुछ भी साथ नहीं गया। उनकी समझ में तो नहीं आया। क्या आप की समझ में आया की राम नाम सत्य है? यदि हाँ तो लग जाओ समझ कर।

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