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*+मनोभावों पर जीवन का विकास निर्भर+*

उत्तर काशी
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सौजन्य --शान्तिकुन्ज
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*‼ऋषि चिंतन‼*
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〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️ *मनोभावों पर जीवन का विकास निर्भर*
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"मनोविज्ञान" का एक अटल नियम है कि जो "व्यक्ति अपने मन में जिस प्रकार की भावना सँजोए रहता है वह अंततः वैसा ही बन जाता है।* एक पहलवान और एक श्रमिक अपने-अपने तरह से शारीरिक श्रम ही किया करते हैं। पसीना बहाते और शरीर में थकान लाया करते हैं। *किंतु उसमें से एक "हृष्ट-पुष्ट" हो जाता है और दूसरा "क्षीण"। यह अंतर केवल "भावना" का है।* पहलवान व्यायाम का श्रम करते समय यह भावना रखता है कि वह जो शारीरिक श्रम कर रहा है, पसीना बहा रहा है, वह स्वास्थ्य लाभ के लिए कर रहा है और उसे आए दिन स्वास्थ्य लाभ हो रहा है। अपनी इसी भावना के अनुसार वह हृष्ट-पुष्ट तथा बलिष्ठ हो जाता है। श्रमिक की भावना श्रम करते समय ऐसी नहीं होती। वह सोचता है कि वह पेट के लिए औरों की मजदूरी कर रहा है। पैसे के लिए सेवा कर रहा है। जीविका की मजबूरी उससे परिश्रम करा रही है। अपनी इसी भावना के कारण वह पहलवान की तरह हृष्ट-पुष्ट नहीं हो पाता। *"विवशता" एवं "मजबूरी" की भावना से उसका शरीर थक जाता है। उसकी शक्तियों का हास होता जाता है।*
"भावना" के प्रभाव का यह सत्य कभी भी किसी भी क्षेत्र में देखा जा सकता है।* जो विद्यार्थी विद्या प्राप्त करने, परीक्षा में सफल होने की भावना से अध्ययन किया करता है, वह शीघ्र ही योग्यता प्राप्त कर लेता है। इसके विपरीत जो मजबूरी के साथ, अभिभावकों अथवा अध्यापकों के त्रास से पढ़ा करता है, वह कोई लाभ नहीं उठा पाता। उसका अधिकांश श्रम बेकार चला जाता है। *मनुष्य की "भावना" ही "मृत्यु" है और वही "अमृत"।* भावना की तेजस्विता मनुष्य में ओज, तेज तथा आयुष्य की वृद्धि करती है, जबकि उनकी मलीनता जीवित रहने पर भी निर्जीव बना देती है।
"शारीरिक" दृष्टि से "निर्बल" हो जाने पर भी मनुष्य को "मानसिक" रूप से "सबल" बना रहना चाहिए।* अपने मनोबल को बनाए रखने से शीघ्र ही ऐसा समय आ जाएगा और मनुष्य शारीरिक दृष्टि से भी सबल बन जाएगा। हमारे विचारों का प्रवाह जिस ओर होगा, निश्चय उसी ओर बढ़ेंगे। उद्वेग, शोक, दुःख, चिंता, निराशा अथवा जीवन के प्रति अविश्वास की भावना रखने वाले संसार में कदापि सफल अथवा सुखी नहीं रह सकते। *"आत्मविश्वास" के साथ शक्तिभर प्रयास करने, आशापूर्ण दृष्टिकोण से देखने और साहस के साथ संघर्ष करने वाले कर्मवीर सारी कठिनाइयों को जीतकर जीवन के रंगमंच पर प्रतिष्ठित होते हैं। जरा सी कठिनाई आ जाने पर रोने लगने वाले, घबराकर हाथ-पैर छोड़ देने वाले अथवा अपनी शक्तियों में अविश्वास करने वाले संसार के हर सुख से वंचित रहकर शोक-संताप से भरा जीवन काटने के ही अधिकारी बन सकते है ।
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