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रंगमंच से दूर करती सत्ता, रंगकर्मी और दर्शक परेशान

सुनो....सुनो.... सुनो....
दिल्ली शहर के तमाम रंगकर्मियों, तमाम दर्शकों, तमाम बाशिंदों, तमाम नागरिकों सुनो।दिल्ली के सर्वे सर्वा, ज्ञानशील, दिल्ली की तहज़ीब,अदब संस्कृती के सरमायेदार,सरपरस्त,संरक्षक,मददगार,तुग़लकी फ़रमान की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले जनाब ए मोहतरम, हमारे "लेफ्टिनेंट गवर्नर यानी उपराज्यपाल" साहिब का नया ऐलान सुनो।

"दिल्ली नगर निगम के एक नए हुक्म के मुताबिक अब दिल्ली के सभी रंगकर्मियों/कलाकारों को दिल्ली में किसी भी ऑडिटोरियम में नाट्यकला, नृत्यकला, और संगीतकला की किसी भी महफ़िल जमाने के लिए, प्रोग्राम करने के लिए, नाटक करने के लिए, सभी रंगकर्मियों/कलाकारों/अदाकारों/नचईयों/भांडों को अब से एक नए पोर्टल पर आवेदन भरकर देना होगा। इसका नाम `दिल्ली में भोजन/आवास और बोर्डिंग प्रतिष्ठानों के लाइसेंस के लिए एकीकृत पोर्टल’ है यानी रंगमंच, संगीत, नृत्य या दूसरे सांस्कृतिक आयोजनों के लिए इस पोर्टल पर आवेदन देना होगा और हर प्रस्तुति के लिए सरकार को कुछ ज़्यादा नहीं बस एक हजार रुपए का शुल्क देना होगा(हाय राम नाटक करने के लिए एक और अड़चन, परेशानी उफ्फ)। इसके अलावा बिजली, पेस्ट कंट्रोल, अग्निशामक की सुविधाओं का भी ध्यान रखना होगा और फिर नाट्य प्रस्तुति के पहले दिल्ली पुलिस से भी स्वीकृति लेनी होगी। इसका भी शुल्क देना होगा। (उफ्फ अब तो पूरी बैंड बज गई)

हमनें ये सब दिल्ली में रंगकर्मियों कलाकारों,अदाकारों,सवालकारों, भविष्य के चिंताकारों की रंग दीवानगी पागलपन, बावलेपन को देखते हुए ये बेहतरीन फ़ैसला लिया है,"हम अच्छी तरह से वाकिफ हैं आपके पास नाटक की रिहर्सल करने के लिए कोई स्पेस/जगह नहीं होती आप दिल्ली के ब्लैकहोल में यानी पार्कों में, मंडी हाउस के गोल चक्कर में, सड़कों पर पटरियों पर, कोनो में छुप-छुप कर, तो कभी अपने घर के ड्राइंग रूम में,अपनी चाय समोसे के पैसे काट काट कर रिहर्सल स्पेस किराए पर लेकर जैसे तैसे नाटक करते हों" उसके बाद एक एक दर्शक गण को व्यक्तिगत रूप से फोन करके, ऑडिटोरियम के बाहर परचे बांट बांटकर नाटक में आमंत्रित करते रहते हैं,कुछ दर्शक आपके अरमान को खाद पानी देने के लिए पर्चा जेब में रख लेते हैं कुछ आगे जाकर सड़क पर फेंक देते हैं, मगर आप लोग बावलों का बहीखाता लिए फिर भी नाटक करते रहते हों उम्मीद है उपराज्यपाल साहिब के इस फैसले से दिल्ली के रंगकर्म पर यहां की सांस्कृतिक विरासत के आने वाले भविष्य पर अब चार चांद नहीं पांच चांद लगेंगे।
इसीलिए सब मिलकर गाएं।
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!

हमारी दिल्ली में,तहज़ीब की जन्नत में,नाटक करना बिल्कुल नामुमकिन हो गया है उस पर भी ऐसा फरमान आया है। सोचों.... सोचों... सोचों...
जो सरकार जो व्ययवस्था रंगमंच जैसी अव्यवसायिक, गैर पेशावराना कला पर टैक्स लगाएं उसकी महानता के खिलाफ़ क्या आपकों चुप रहना चाहिए? चीख कर इसका विरोध नहीं करना चाहिए ?
"नहीं... नहीं... नहीं... हम ये आदेश नहीं मानेंगे।"
दिल्ली के सभी रंगकर्मियों एकत्र होकर,संगठित होकर इस काले कानून के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद हो

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