क्यों करते हैं शिवलिंग की आधी परिक्रमा
हिन्दू धर्म पंचांग के पांचवे माह श्रावन यानी सावन में शिव पूजा का विशेष महत्व है। हर शिव भक्त अपनी श्रद्धा, आस्था और शक्ति से शिव पूजा कर अपनी कामनाओं को पूरा करना चाहता है। लेकिन शास्त्रों में शिव उपासना के लिए शिवलिंग पूजा की मर्यादाएं भी नियत है। इसकी जानकारी के अभाव में कुछ देव अपराध हो जाते हैं।
*क्यों करते हैं शिवलिंग की आधी परिक्रमा*
समय समय पर भगवान शिव ने धरती पे अपनी आत्मा के स्वरुप आत्मलिंग अलग अलग 12 जगहों पर स्थापित किये है, लेकिन फिर भी उन आत्मलिंगो के आज भी पूरी परिक्रमा नही की जाती है। लेकिन क्या रहस्य है की प्रथा के पीछे जिस कारण से सब लोग इस अत्यंत ही सुखदाई परिक्रमा को नही करने को बाध्य है।
आइये इस रहस्य को समझने का प्रयास करते हैं।
भगवान शिव की शिव स्तुति “शीश गंग अर्धांग पार्वती नंदी भृंगी नृत्य करत है” में भृंगी नाम आपने सुना होगा, ये एक पौराणिक कालीन ऋषि थे जो की शिव के परम भक्त थे।लेकिन भक्त कुछ ज्यादा ही कट्टर थे, इतने की शिव की तो आराधना करते लेकिन बाकि भक्तो की भांति पार्वती को नहीं भजते थे।
उनकी भक्ति अदम्य थी लेकिन वो पार्वती जी को हमेशा ही शिव से अलग समझते थे ।
एक बार तो ऐसा हुआ की वो कैलाश पर भगवान शिव की परिक्रमा करने गए लेकिन वो पार्वती की परिक्रमा नहीं करना चाहते थे, इस पार्वती ने ऐतराज जताया और कहा की हम दो जिस्म एक जान है तुम ऐसा नही कर सकते पर कट्टरता देखिये भृंगी ने पार्वती को अनसुना किया और शिव की परिक्रमा लगाने बढे। लेकिन तब पार्वती शिव से सट के बैठ गई, मामले में और नया मोड़ आया भृंगी ने सर्प का रूप धरा और दोनों के बीच से होते हुए शिव की परिक्रमा देनी चाही।
तब शिव ने पार्वती का साथ दिया और संसार में अर्धनारीश्वर रूप धरा, तब भृंगी क्या करते पर गुस्से में आके उन्होंने चूहे का रूप धरा और शिव और पार्वती को बीच से कुतरने लगे।पर तब शक्ति को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी को श्राप दिया की जो शरीर तुम्हे अपनी माँ से मिला है वो तुरंत तुम्हारी देह छोड़ देगा।तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वती से अपनी भूल की क्षमा मांगी।
तंत्र साधना के हिसाब से मनुष्य को अपनी देह में हड्डिया और मांसपेशिया पिता की देन होती है जबकि खून और मांस माता की, श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया. भृंगी निढाल हो जमीं पे गिर पड़े और हालत ये थे की वो खड़े भी होने की स्थिति में नही थे, तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वती से अपनी भूल की क्षमा मांगी.
हालाँकि तब पार्वती ने अपना श्राप वापस लेना चाहा पर अपराध बोध से भृंगी ने मना कर दिया, पर उन्हें खड़ा रहने के लिए सहारे स्वरुप एक और (तीसरा) पैर प्रदान किया गया जिसके सहारे वो चल और खड़े हो सके।
इस दिन से भी शिव ने ही ये कहा की मेरे अत्मलिंगो की पूरी परिक्रमा नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि वो मेरा अधूरा रूप है।जो कोई भी व्यक्ति ऐसा करेगा उसे दोष लगेगा, तो ऐसे भृंगी ऋषि की कट्टरता के कारण ही शिव के आत्मलिंगो की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है, उन पीठो की बनावट ही इस हिसाब से कर दी गई के ऐसा न किया जा सके।