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कुर्सीजीवी लोगों का सत्ता के खेल और तिकड़में

सरकार बनाये रखने या चुनाव जीतने के लिये भारतीय जनता पार्टी किस प्रकार से हथकंडे अपनाती है, इसका एक और उदाहरण महाराष्ट्र में देखने को मिला है जहां पूर्व मंत्री अनिल देशमुख ने आरोप लगाया है कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने उन पर दबाव डाला था कि वे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, उनके पुत्र आदित्य ठाकरे, नेशनल कांग्रेस पार्टी के अजित पवार और पूर्व परिवहन मंत्री अनिल परब को फंसाने वाले हलफ़नामे पर हस्ताक्षर कर दें जिसके लिये उन्होंने मना कर दिया था। यह तब की बात है जब राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना, एनसीपी तथा कांग्रेस की सरकार चल रही थी। भारतीय जनता विपक्ष में थी। देशमुख के अनुसार एक मध्यस्थ के माध्यम से उनके पास यह संदेश आया था। वह मुलाकात एक होटल में हुई थी जिसमें उन्हें प्रस्ताव दिया गया था कि अगर देशमुख ऐसा करते हैं तो उन्हें उनके ख़िलाफ़ चल रहे मामले में राहत मिल जायेगी। देशमुख के अनुसार उन्होंने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था। उल्लेखनीय है कि देशमुख ने इसी सरकार में गृह मंत्री के पद से अप्रैल, 2021 में इस्तीफ़ा दे दिया था क्योंकि उन पर मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह द्वारा आरोप लगाया गया था कि उन्होंने उनसे कहा था कि पुलिस वालों से वे शहर भर के होटलों व बार मालिकों से हफ़्ता वसूली के लिये कहें। देशमुख अब एनसीपी (शरद पवार) के नेता हैं।
यह मामला इसलिये उठा है क्योंकि बुधवार को फडनवीस ने आरोप लगाया है कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार के खिलाफ़ अनिल देशमुख बातें करते रहे हैं जिसकी वीडियो क्लिप उनके पास है। इसी के जवाब में देशमुख ने गुरुवार को एक प्रेस काॅन्फ्रेंस कर फडनवीस को चुनौती दी कि वे कथित वीडियो क्लिप को सार्वजनिक करें। इसी सन्दर्भ में बुलाई पत्रकार वार्ता में खुद देशमुख ने यह आरोप जड़ दिया। उनका आरोप है कि उनसे कहा गया था कि अगर वे ऐसा करते हैं तो उनके पीछे न ही ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) लगेगी और न ही सीबीआई। वैसे देशमुख की इस चुनौती का जवाब भी फडनवीस की ओर से आ गया है। उन्होंने कहा कि देशमुख के ख़िलाफ़ उनकी पार्टी के ही नेता उनसे मिले थे। उन लोगों के पास उद्धव ठाकरे, शरद पवार, विवादास्पद पुलिस अधिकारी सचिन वझे आदि के खिलाफ उनकी (देशमुख) टिप्पणियों वाले सबूत भी थे। फडनवीस ने चेतावनी दी है कि यदि उन्हें चुनौती दी गयी तो उनके पास वीडियो क्लिप सार्वजनिक करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जायेगा। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि परमबीर सिंह द्वारा उन पर लगाये 100 करोड़ रुपये की वसूली वाले आरोप के मामले में देशमुख जमानत पर हैं।
इस प्रकरण में जिस वीडियो क्लिप को लेकर विवाद हो रहा है, वह सार्वजनिक होती है या नहीं और क्या उस क्लिप से कुछ साबित होता है, यह तो पता नहीं लेकिन एक बात साफ है कि विरोधी दलों के नेताओं को फंसाने और स्थिर सरकारों को गिराने या डांवाडोल करने का भाजपाई खेल लम्बे अरसे से जारी है, उसकी महाराष्ट्र में गहरी जड़ें होने का एक और सबूत मिला है। वैसे तो भाजपा ने अनेक सूबों में विरोधी दलों की सरकारों को इन्हीं तरह के दांव-पेंचों से गिराया है, लेकिन महाराष्ट्र में यह खेल बड़े पैमाने पर खेला गया था जिससे देश का लोकतंत्र शर्मसार हुआ था। याद हो कि 2022 के विधानसभा चुनावों में एक बार भाजपा की सरकार बनी थी जो बाद में पलट गयी थी। यहां एनसीपी व कांग्रेस के समर्थन से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार तो बनी थी लेकिन बाद में शिवसेना व एनसीपी को तोड़कर भाजपा ने सरकार बनाई है। शिवसेना जहां एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में टूटी वहीं एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित ने प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल आदि के साथ अलग पार्टी बना ली थी। उप मुख्यमंत्री बने अजित पवार वही नेता हैं जिनके बारे में भाजपा भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगाती थी।
इस प्रकरण के सामने आने से एक बार फिर से आरोप प्रबल हो गए हैं कि भाजपा अपनी जांच एजेंसियों के बल पर किस प्रकार से विरोधी दलों के नेताओं को तोड़ने का काम करती है। यह आश्चर्य की बात है कि हाल के लोकसभा चुनावों में इसी महाराष्ट्र में झटका खाने के बाद भी भाजपा नेतृत्व अपनी इन ओछी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें ज़बरदस्त ढंग से घटी हैं। भाजपा ने जिस प्रकार से शिवसेना व एनसीपी को तोड़ा था, उसका अच्छा संदेश जनता में नहीं गया था। उद्धव और पवार के पक्ष में सहानुभूति लहर चल पड़ी थी। राज्य में अक्टूबर तक चुनाव होने हैं। भाजपा की इसी तोड़-फोड़ के कारण आज भी जनता की सहानुभूति उद्धव-पवार के साथ है। बहुत सम्भव है कि इसका खामियाजा एक बार फिर से भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। विधानसभा चुनावों में वहां की जनता क्या फ़ैसला करती है यह तो बाद में ही पता चलेगा, लेकिन भाजपा का षड्यंत्रकारी चेहरा एक बार फिर से बेनकाब हो गया है।

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