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शहर में धड़ल्ले से संचालित हो रहे है अवैध क्लिनिक संबंधित जिलाधिकारी को अवगत कराया गया है लेकिन नहीं होती है कोई कारवाई ,, अनूपगढ़

शहर में धड़ल्ले से संचालित हो रहे है अवैध क्लिनिक
संबंधित जिलाधिकारी को अवगत कराया गया है लेकिन नहीं होती है कोई कारवाई

अनूपगढ़ ✍️ राजेश खारडू
अनूपगढ़ , में इन दिनों झोला छाप डॉक्टरों की भरमार है। शहर की हर गल्ली चौक-चौराहे पर बड़े-बड़े बोर्ड लगा कर ये डॉक्टर भोले-भाले ग्रामीणों को ठगने के प्रयास में लगे हैं। भोली-भाली जनता इनके झांसे में आकर आर्थिक दोहन के साथ-साथ शारीरिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। सुत्रों की माने तो शहर व ग्रामीण क्षेत्र में अप्रशिक्षित डाक्टरों झोला छाप द्वारा इलाज करने के साथ साथ बड़े बड़े आपरेशन तक किये जा रहे हैं। साथ ही मोटी रकम लेकर नर्सिग होम संचालक इलाज के नाम पर मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्हें इस बात का डर नहीं होता कि मरीज मरेगा या उसे इंफेक्शन संक्रमण भी हो सकता है.। ऐसे नीम-हकीम के चक्कर में आये दिन कई लोगों की जान जा रही है।. वहीं, झोलाछाप डॉक्टर अपनी-अपनी क्लिनिक के आगे बड़े-बड़े अक्षरों मे डॉ. लिखा बोर्ड लगाने में परहेज नहीं करते हैं।वही सरकारी अस्पतालों में सरकार ने स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर बनाने को लेकर निशुल्क दवाओं सहित कई जांचे भी निशुल्क में कराए जाने की व्यवस्था उपलब्ध कराई है लेकिन फिर भी हालात् ये है। कुछ जागरूक जनों द्वारा समय-समय पर जिला प्रशासन से झोला छाप चिकित्सकों के विरूद्ध कार्रवाई किये जाने की मांग की जाती रही है। इन डॉक्टरों के द्वारा अपने किल्निक पर मरीजों को देने की दवाईयां तक रखी जाती है। इस प्रकार के अस्पताल जहां संचालित हो रहे हैं ऐसे अस्पतालों में सुईं सिरिंज एवं कचरा का कोई बायोवेस्ट सिस्टम नहीं है।इन अस्पतालों में बड़ी बड़ी मशीने व टेबल भी लगा रखे है ,और वगैर एनेस्थीसिया डॉक्टर के मरिजो को शून का इंजेक्शन भी ऐसे डॉक्टरों द्वारा लगाऐ जा रहे हैं।
*जांच के नाम पर भी मरीजों से ऐंठा जाता है पैसा*
झोलाछाप डॉक्टर पहले उल्टा सीधा इलाज करते हैं, इसके बाद जब स्थिति काबू से बाहर हो जाती है तो किसी बड़े डॉक्टर को दिखाने के नाम पर अपनी पीछा छुड़ा लेते हैं। हालांकि, तब तक स्थिति यह हो जाती है कि मरीज को बचाने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती है। ये डॉक्टर बुखार की जांच के लिए कोई भी टेस्ट तक कराने की सलाह नहीं देते हैं। उल्टी, दस्त आदि सामान्य बीमारियों के अलावा मियादी बुखार, डेंगू, मलेरिया, हैजा, पीलिया, मस्तिष्क ज्वर, चिकन पॉक्स व एलर्जी तक का इलाज करने से नहीं चूकते। बिना प्रशिक्षण के लोगों को इंजेक्शन लगाने के साथ ग्लूकोज व अन्य दवाओं को चढ़ा देते हैं। दवा की डोज की सही जानकारी न होने के बावजूद सामान्य बीमारी में लोगों को दवा की हैवी डोज दे देते हैं। इसके चलते कई बार लोगों को एलर्जी व शारीरिक अपंगता तक हो जाती हैं।आजकल तो फिजियोथेरेपिस्ट व एक्यूप्रेशर, दांतों के डॉक्टरों ने कमाल ही कर रखा है शहर में इनके द्वारा इतने क्लिनिक खोले गए हैं जैसे कि कोई बड़े मेले में खिलौने की दुकानें। अब आप स्वयं ही अंदेशा लगा सकते हैं कि शहर में कितने डॉक्टर प्रशिक्षित है। और आप इलाज कैसे करवा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि संबंधित विभाग को इस संबंध में पता नहीं है, विभाग को सब कुछ पता है लेकिन जानबूझकर आखें बंद कर सब देख रहे हैं। अब विभाग पर सवाल तो यही उठता है कि जब संबंधित विभाग के अधिकारी द्वारा जो अभियान के नाम पर जो कार्रवाई की जा रही क्या❓ वह केवल एक दिखावा है, इक्का दुक्का कार्रवाई कर अधिकारी अपना नाम ही जिलें में चमका रहे हैं। या इन डॉक्टरों द्वारा कोई गुलाबी गुलदस्ता मिल रहा है। अगर यह नहीं है तो इन पर कार्रवाई क्यों नहीं होती है यह एक बड़ा सवाल है ❓


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