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स्त्री के सम्मान की रक्षा ही आज समाज की सबसे बड़ी चुनौती :वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पद्मा सिंह

-निर्भया दिवस पर अखंड ​संडे के निर्भया विशेषांक का लोकार्पण
इंदौर (मध्य प्रदेश)। 'स्त्री के सम्मान की रक्षा ही आज समाज की सबसे बड़ी चुनौती है। आज नैतिक मूल्यों को बचाने की जरूरत है।' यह बात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पद्मा सिंह ने निर्भया दिवस पर अखंड संडे द्वारा निर्भया विशेषांक के ऑनलाइन लोकार्पण अवसर पर कही ।

 उन्होंने कहा कि, ' पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से भारतीय समाज को बहुत आघात पहुँचा है ।  जब तक हम न्याय, सत्य,परेपकार, त्याग और कर्तव्यपालन जैसे मानवीय मूल्यों को समाज का हिस्सा नहीं बना लेते, तब तक भारतीय संस्कृति की सुरक्षा प्रशन चिह्न बनकर खड़ी रहेगी । पुरुषों की सामंतवादी विचारधारा को परास्त करने के लिए समाज की उन रूढ़िय़ों पर नियंत्रण करना ज़रूरी है जिससे ये जन्मती है।'  

 समाज सेविका डॉ. दिव्या गुप्ता ने कहा कि, 'इस विषय को जब तक हम  समाज के हर वर्ग तक नहीं लेकर जाएँगे, तब तक समस्या के समाधान के बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते। निर्भया कल भी थी आज भी है और आगे भी रहेगी क्योंकि हमारे प्रयास अधूरे हैं। हम उसकी जड़ पर प्रहार नहीं कर रहे हैं।'  
सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ.शेफाली जैन ने कहा कि, 'इसकी जड़ें काफी गहरी हैं।  माँ के गर्भ से ही बेटी के लिए तिरस्कार के माहौल की शुरुआत हो जाती है।  हम अपने बेटे और बेटी का लालन-पोषण एक समान नहीं करते । दोनों के लिए नियम समान नहीं होते।  उनको संवेदनशीलता और नारी सम्मान का पाठ शुरू से ही पढ़ाना ज़रूरी है। यही नहीं, हमें अपनी बेटियों को भी ज्यादा साक्षर एवं आत्मनिर्भर बनाना होगा।'
     इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी ने वर्तमान बिगड़ते परिवेश में नारियों पर बढ़ती आपराधिक घटनाओं पर अपनी ङ्क्षचता जाहिर करते हुए कहा कि, 'ये हमारे देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि तमाम प्रयासों के बावजूद, तमाम कानूनों के बावजूद शुम्भ और निशुम्भ जैसे राक्षस समाज में बढ़ते ही जा रहे हैं । निर्भया एक मंत्र बन गई है, एक अस्त्र, एक शस्त्र बन गई है, जो दरिंदों को  राक्षसों को समाप्त करने में अपनी भूमिका निभाएँगी।'
 
वहीं कृति संपादक मुकेश इन्दौरी ने कहा कि, 'संग्रह में कुल 80 रचनाकारों    की रचनाएँ शामिल हैं, जिसमें से 27 कवि एवं 53 कवयित्रियाँ  हैं।  उन्होंने देश में आए दिन होती बलात्कार, यौन उत्पीडऩ, पाशविक दिल दहलाने वाली घटनाओं से क्षुब्ध होकर अपने आक्रोश को रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। रचनाओं में देश की लचर कानून व्यवस्था, बढ़़ती पाश्चात संस्कृति के प्रभाव पर रोष जताया गया।  साथ ही वर्तमान बिगड़ते परिवेश में सामाजिक बदलाव की पैरवी भी की । समाज को, परिवार को आज संस्कारित करने की आवश्यकता पर बल दिया और स्वयं नारी से इन अपराधों के खिलाफ आवाज़ उठाने की अपील भी की ।  क्या बेटी होना अभिषाप है ?  क्या नारी ही नारी की शत्रु नहीं ?  अपराधी बेटों की माँओं के मन में बेटी के प्रति ममता नहीं ? आखिर कब तक ? ऐसे कई प्रश्नचिह्न भी रचनाकारों द्वारा खड़े किए गए हैं जो अंतर्मन को झकझोर जाते हैं ।  माँ स्वयं आगे आए और अपने अपराधी प्रवृत्ति के बेटों को सुधारे और उन्हें दंडित करें, पीडि़ता के साथ न्याय करें ।  यदि माता-पिता स्वयं अपने बच्चों को सुधारने के साथ संस्कारित करने लग जाएँ और अपराध करने पर उन्हें स्वयं दण्डित करने लग जाएँ तो निश्चित ही एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है ।' मालवी कवियित्री हेमलता शर्मा भोली बैन ने कहा कि, 'निश्चय ही यह संग्रह समाज में एक नई अलख जगाएगा ।'

इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.योगेन्द्रनाथ शुक्ल, प्रदीप नवीन, ज्योति जैन, आशा जाकड़,  डॉ. सुधा चौहान,  डॉ.अंजुल कंसल, डॉ.मीना परिहार , ब्रजेन्द्र नागर,  अनिल ओझा, दिनेशचंद्र तिवारी, माया बदेका उज्जैन, चंद्रकला जैन चण्डीगढ़, हंसा मेहता, नीति अग्रिहोत्री, प्रभा तिवारी, कुमुद दुबे, सुनीता संतोषी, शोभारानी तिवारी, मुन्नी गर्ग , डॉ. शशिकला अवस्थी, डॉ. शशि निगम, हीति निगम, रागिनी शर्मा, सहित  देश-प्रदेश के कई साहित्यकार एवं अखंड संडे परिवार के सदस्य ऑनलाइन उपस्थित थे। संचालन मुकेश इन्दौरी ने किया। आभार हेमलता शर्मा 'भोली बैन' ने माना।

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