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मेरे गीत संग्रह का ''गीत शतक" विमोचन का विमोचन किया गया

शतक का विमोचन

*गीत शतक:*
*सकारात्मक संदेशों का दस्तावेज़*

गीतकार सुरेन्द्र कुमार शर्मा द्वारा विरचित 'गीत शतक' का विमोचन विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित वार्षिक उत्सव ~ पैनाचे के अवसर पर किया गया । इस अवसर पर यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट, अध्यक्ष ललित पंवार पूर्व आईएएस,
ओंकार बगड़िया, CEO एवं‌ कुलपति होशियार सिंह उपस्थित रहे । उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में सौ गीत है जिनमें से अधिकांश कवि द्वारा उनके यूनिवर्सिटी में अल्फ़ाज़ साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष पद पर रहते हुए लिखे गए हैं।‌

आज जब कविता मुक्त छंद की ओर अग्रसित हो रही है, ऐसे में कवि की छांदस कविता में महनीय विषयों पर उदात्त-ध्येय को यथार्थ के धरातल पर उतारने की कला स्वागत-योग्य है।

कवि कहीं मन को साधने और मन को साधकर उसे धोने की ही बात नहीं करता, अपितु मन का भोजन बंदकर साँसों में डोलना और अमृत-रस घोलना चाहता है। वह प्यास के समास में तृप्ति की तलाश करता हुआ सतत अग्रसर है। उसे आँसुओं के हास में जीत का मधुमास मिल जाता है। इतना ही नहीं वह मन की दीवार पर टँगी धुँधली यादों को देखता हुआ उन्हीं के साथ बहता है। अभावों से लड़ते हुए उसके जीवन का सफ़र गुजरता है। वह जीवन-गीत को समय की धारा मानता है तथा जीवन-मूल्य बचाने के लिए चिंतित है। यथा-
'मूल्यहीन युग की बाहों में।
अर्थहीन भटकी राहों में।
जीवन के इस कोलाहल में-
मानस की बढ़ती चाहों में।
+ + + + + +
आओ, जीवन-मूल्य बचाएँ।'
कवि अपने प्रश्नों के उत्तर खोजता रहा, उसे कहीं ऐसी छाँव नहीं मिली जो थकान मिटा दे और न कोई ऐसा मिला जो दुख का चलन मिटा दे। कितने मन्दिरों को पूजा ईश्वर नहीं मिला और आगे कहता है-
'रिश्ते बरसाती पानी के,
सँग बहनेवाले।
ख़ुदगर्ज़ी में डूबे ये,
अपना कहनेवाले।
जो प्यासों की तृषा मिटा दे, निर्झर नहीं मिला।'
इसके बवजूद यादों के सहारे सूनेपन को दूर करने का उसका प्रयास श्लाघनीय है। वह पुरजोर आवाहन करते हुए कहता है-
'आओ, हम भी रंग लगाएँ
रंगों के त्यौहार में।
पल में सदियों को जी लें हम
रंगों की बौछार में।'
कवि क्या कहना चाहता है, उसी के शब्दों में देखें-
मैं तुम्हारे रूप का शृंगार होना चहता हूँ।
सृष्टि के सौन्दर्य का संसार होना चहता हूँ।
आत्मा से आत्मा के मधु-मिलन की चाहना में-
मैं तुम्हारी प्रीति का अधिकार होना चहता हूँ।
इतना ही नहीं वह आशान्वित होकर आगे कहता है-
बीत रहे दिन कब आओगे।
सच भी कब अब बतलाओगे।
प्यास बुझाकर अन्तर्मन की-
प्रेम - सुधा कब बरसाओगे।'
कविताएँ समय का विश्वसनीय दृश्यालेख निर्मित करती हैं, जिसके केन्द्र में मानवता की गम्भीर चिंताएँ हैं, जिनके हल के लिए कवि चिंतातुर है, हताश नहीं। बल्कि, वह स्वर्णिम जीवन की कल्पना को साकार करने के लिए सतत प्रयत्नशील दिखाई पड़ता है।
आशा है कि इस कृति का सर्वत्र स्वागत होगा।
विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एवं अध्यक्ष द्वारा गीतकार सुरेन्द्र कुमार शर्मा की कृति "गीत-शतक" की भूरी-भूरी प्रशंसा की गई और काव्य की इस कृति को सकारात्मक संदेशों का दस्तावेज बताते हुए बहुत सराहा गया तथा इस सकारात्मक संदेशों से संपृक्त कृति-हेतु सुरेन्द्र कुमार शर्मा को बधाई दी गई ।

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