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वेंटीलेटर.... 👇🏻

क्या वेंटीलेटर सिर्फ़ पैसा बनाने की मशीन है????

अक्सर आपने लोगों को ये कहते हुए सुना होगा की वेंटीलेटर पर जाने वाला वाले मरीज़ ठीक नहीं होते या अस्पताल सिर्फ़ पैसा लूटने के लिए मरीज़ को वेंटीलेटर पर रखते हैं।

आइये जाने आज बिलकुल सामान्य भाषा में की वेंटीलेटर है क्या।

सामान्य अवस्था में शरीर में साँस लेने और छोड़ने का काम फ़ेफ़रा करता है।

अगर शरीर की अवस्था ऐसी है कि
१) मरीज़ फेफरे की किसी चोट या बीमारी के कारण ख़ुद से साँस नहीं ले सकता ।
२) इसका डर है कि मरीज़ की स्थिति कभी भी ख़राब हो सकती है जिसकी वजह से उसकी साँस लेने की क्षमता प्रभावित हो जाएगी।
३) मरीज़ के मस्तिष्क में ऐसी चोट है कि मरीज़ को पूरी तरह बेहोश रखा जाए ताकि मस्तिष्क पर दवाब ना पड़े

तो ऐसे परिस्थिति में मरीज़ को वेंटीलेटर पर रखा जाता है।

और इन परिस्थितियों में वेंटीलेटर का मुख्य काम है की जब तक मरीज़ ख़ुद से साँस लेने के लायक़ ना हो जाये तब तक एक कृत्रिम फ़ेफरे की तरह काम करना।

वो फ़ेफरे की जगह मरीज़ को साँस देता है ताकि सुचारू रूप से मरीज़ को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलता रहे।

वेंटीलेटर में कई mode होते हैं जो मरीज़ के स्थिति के अनुसार बदले जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए अगर मरीज़ का फ़ेफ़रा पूरी तरह ख़राब है तो उसमें mode अलग होगा और अगर फ़ेफ़रा 50% ख़राब है तो उसका mode अलग होगा|

जैसे जैसे मरीज़ के साँस लेने की क्षमता ठीक होती है, वैसे वैसे वेंटिलेटर के mode में बदलाव किया जाता है। और जब मरीज़ ख़ुद से अच्वे तरीक़े से साँस लेने लगता है तो उसे वेंटीलेटर से हटाया जाता है।

चूँकि वेंटीलेटर पर रखे जाने वाले मरीज़ की स्थिति काफ़ी गंभीर रहती और और वो बेहोश रहते हैं या उन्हें बेहोश रखा जाता है इसीलिए जानकारी के अभाव में लोगों में यह संशय रहता है कि उन्हें धोखे में रखा जा रहा है।

तो हमेशा ध्यान रखें कि अगर मरीज़ की साँस लेने की क्षमता किसी भी बीमारी/चोट से प्रभावित हो सकती है तो उन्हें वेंटीलेटर पर रखने की ज़रूरत पड़ सकती है।

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