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क्या यही न्याय है?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, लोकसभा के चुनाव खत्म होते ही एक बार फिर एक्शन में आ गए हैं। राजस्व मामलों के निपटारे में लापरवाही पर योगी सख्त हुए, उन्होंने उच्चस्तरीय बैठक में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों की सूची मुख्यमंत्री कार्यालय में सौंपने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री के सख्त होते ही राजस्व परिषद् के चेयरमैन रजनीश दुबे ने राजस्व मामलों की समीक्षा कर लापरवाही बरतने वाले राजस्व अफसरों, एडीएम, एसडीएम, नायाब तहसीलदार और तहसीलदार स्तर के 124 अधिकारियों को कारण बताओं नोटिस जारी किया है। मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने भी लापरवाह अधिकारियों को फटकार लगाई है।
इस सब बावजूद राजस्व कर्मियों द्वारा किसानों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है, एक किसान के उदाहरण के साथ आपके सामने रखूंगा। 81 वर्षीय वृद्ध किसान रमेश कुमार पुत्र बिहारी सिंह की जमीन मुरादनगर के गाटा संख्या 111 में है। गाटा संख्या 111 नहर गाटा संख्या 95 और नहर की नाली गाटा संख्या 110 के बीच स्थित है। रमेश कुमार का आरोप है कि गाटा संख्या 109 के किसानों ने नहर की नाली 110 को अपने खेत में मिला कर गाटा संख्या 111 के कुछ भू-भाग पर कब्जा कर लिया है। जिसकी शिकायत 16 जनवरी 2010 को आयोजित थाना दिवस में की तत्कालीन लेखपाल ने उसी दिन अर्थात 16 जनवरी को आख्या दे दी कि नाली मौके पर खुली हुई पायी गई। फिर किसान नें 30 मई 2011 को परगनाधिकारी के न्यायालय में धारा 41 एल आर एक्ट के तहत पक्के ठीयेबन्दी बन्दी के लिए आवेदन किया, तथा ठीयेबन्दी का शुल्क 800 रुपये दिनांक 09-06-2011 को चालान द्वारा भारतीय स्टेट बैंक धामपुर में सरकार के खाते जमा कर दिया गया। राजस्व निरीक्षक और हल्का लेखपाल ने 22 जून 2011 को ठियेबन्दी का कार्य किया। राजस्व निरीक्षक ने ठियेबन्दी की रिपोर्ट 10 माह बाद 04 अप्रैल 2012 को न्यायालय को सौपी। किसान नें अपना पक्ष रखने के लिए उद्धरण खतौनी, खेत का सर्टिफाइड नक्शा, आकार पत्र आदि न्यायालय में जमा किए।
पहले ठीयेबन्दी का मुकदमा धामपुर राजस्व न्यायालय में चला, जून 2016 में मुकदमा बिजनौर एडीएम प्रथम के न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया। यही मुकदमा एक बार फिर अक्टूबर 2023 को धामपुर राजस्व न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया। मुकदमे में 200 से अधिक तरीख लगीं। फिर 07 जून 2024 को राजस्व निरीक्षक की रिपोर्ट और ठियेबन्दी खाम नजरी नक्शे सहित निरस्त कर दी गई।
ठियेबन्दी निरस्त करने में जो दलील दी गई वह इस प्रकार है- " मेरे द्वारा नियत तिथि पर उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना एवं पत्रावली का भलि-भांति अवलोकन किया। पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि राजस्व निरीक्षक के द्वारा ठियेबन्दी खाम का पक्षों को नोटिस 22-06-2011 को दिया गया जबकि राजस्व निरीक्षक के द्वारा ठियेबन्दी खाम का कार्य दस माह बाद 04-04-2012 को की गई। फाईल मैप में एक सिहद्दा खसरा नम्बर 153 व दूसरा चकरोड 115 के बाद खसरा नम्बर 56 के ऊपर है, जबकि राजस्व निरीक्षक ने चकरोड का नम्बर 119 नजरी नक्शे में तहरीर किया है। खसरा नम्बर 56 आदि को नजरी नक्शे में नहीं दर्शाया गया है। अभिलेखों व नजरी नक्शा में भिन्नता होना प्रतीत होता है। पत्रावली पर उपलब्ध उद्धरण खतौनी से स्पष्ट है कि खसरा नम्बर 111 रकबई 1.179 है0 के पूर्ण स्वामी नहीं है अपितु सहखातेदार है। इस खसरा नम्बर 111 के सहखातेदार प्रभु रामलाल शिक्षण संस्थान द्वारा प्रबन्धक भी है लेकिन वादी द्वारा इनको पक्षकार नहीं बनाया गया है। इसलिए ठियेबन्दी प्रार्थना पत्र कानूनी रूप से त्रूटिपूर्ण है जिसके आधार पर ठियेबन्दी किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। " इस टिप्पणी के बाद आदेश पारित होता है कि "अतः उपरोक्त विवेचना के आधार पर सम्बंधित राजस्व निरीक्षक की रिपोर्ट ठियेबन्दी खाम दिनांकित 04-04-2012 मय नजरी नक्शा निरस्त की जाती है एवं प्रार्थना पत्र ठियेबन्दी भी निरस्त किया जाता है। बाद आवश्यक कार्यवाही पत्रावली दाखिल दफ्तर हो। "
इस मुकदमे में खास बात यह है कि प्रतिवादी द्वारा गलत साक्ष्य देकर न्यायालय को गुमराह किया गया है। प्रतिवादी द्वारा जिस खसरा नम्बर 115 में चकरोड बताया गया है, जिसका उल्लेख परगनाधिकारी की विवेचन में किया गया है, वह चकरोड है ही नहीं वह श्रेणी 1-क (भूमि जो संक्रमणीय भूमिधरों के अधिकार में हो) की भूमि है जिस पर जगदीप सिंह पुत्र परमजीत सिंह एवं बलजीत कौर/ स्व0 परमजीत सिंह निवासी शाहअलीपुर काबिज़ है। खसरा नम्बर 56, नहर खसरा नम्बर 95 के उत्तर में दो तीन खेत छोड़ कर है, जबकि खसरा नम्बर 115 नहर के दक्षिण में है। खसरा नम्बर 115 खसरा नम्बर व 56 के बीच कई गाटे हैं । गाटा संख्या 56 को फाईनल मैप में भी नहीं दर्शाया गया है। एक सिहद्दा गाटा संख्या 153 में है इसे राजस्व निरीक्षक ने अपनी रिपोर्ट के नजरी नक्शा में Y से दर्शाया है व दूसरा सिहद्दा जिसे राजस्व निरीक्षक नें नजरी नक्शा में X से दर्शाया गया है नहर के गाटा संख्या 95 के बाद गाटा संख्या 19 एवं गाटा संख्या 3 के मिलान बिन्दु पर स्थित है। यही से तैमूराबाद की सीमा शुरू होती है।
प्रतिवादी द्वारा गाटा संख्या 115 को चकरोड बताना तथा सिहद्दा पत्थर गाटा संख्या 56 में बताना। कतई गलत है, यह न्यायालय में दिया गया गलत साक्ष्य है, जो फैसले का आधार बना।
एक गलत साक्ष्य के आधार पर परगनाधिकारी के न्यायालय से फैसला आता है। गलत साक्ष्य देने वाला और अवैध कब्जा धारकों से मिलकर दस माह बाद रिपोर्ट सौपने वाला राजस्व निरीक्षक का कोई संज्ञान नहीं लेता है। लगभग 12 वर्षों तक 200 तारीखों पर शारीरिक मानसिक और आर्थिक यंत्रणा झेलने के बाद 81 वर्ष का वृद्ध किसान अपने आप को ठगा पाता है, क्या यही न्याय है ?

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