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वायनाड से प्रियंका गांधी वाड्रा की उम्मीदवारी

दो दशक के लंबे समय के बाद देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी राजनीतिक परिपक्वता के लिहाज से स्थापित होते नजर आ रहे हैं। ऐसे समय में पार्टी या यों कहा जाये कि पार्टी की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी ने अपनी बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनावी राजनीति में और भी सक्रिय रूप से उतारने तथा उन्हें अपने बेटे राहुल द्वारा खाली की जाने वाली केरल की वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया है। यद्यपि प्रियंका गांधी सन् 2019 से ही सक्रिय राजनीति में आ चुकी थीं, जब उन्हें पार्टी का महासचिव बनाने के साथ साथ पूर्वी यूपी का जिम्मा सौंपा गया था। यह बात अलग है कि उस समय के आम चुनाव तथा उसके बाद सन् 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में काफी मेहनत के बावजूद उनके नाम कोई खास कामयाबी न दर्ज हो सकी। इसके बावजूद वे सक्रिय रहीं। इस साल के लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में वायनाड में मतदान के बाद पार्टी ने रायबरेली व अमेठी में ​अपने प्रत्याशी घोषित किये तो प्रियंका ने चुनाव प्रचार का जिम्मा स्वयं संभाला और और अपने सधे हुए और तीखे सियासी वारों से स्टार प्रचारक बनकर उभरीं।

अब गांधी परिवार का एक और सदस्य चुनावी सियासत में उतरा है तो कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप फिर लग सकता है, लेकिन तमाम दलों के नेताओं के सगे संबंधियों को चुनावी नैया पार करवाकर मतदाता यह स्पष्ट कर चुका है कि उसे इस चलन से कोई ऐतराज़ नहीं है, बशर्ते प्रत्याशी योग्य हो। अब देखने की बात यह भी होगी कि राहुल के वायनाड छोड़ने के बाद वायनाड के मतदाताओं में प्रियंका अपनी स्वीकार्यता किस सीमा तक बना पाती हैं, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी पर अमेठी की तरह वायनाड से भी भागने का आरोप लगाया है और चुनाव के वक्त मतदाताओं के सामने कांग्रेस को इस पर भी अपनी स्थिति साफ करनी होगी।


तीसरी बात यह भी है कि अभी तक केवल चुनाव प्रचार तक सीमित रहने वाली प्रियंका के सियासी घमासान में उतरने के बाद वे संगठन में किस हद तक निर्णायक भूमिका निभाएंगी..? हालांकि इस सवाल का जवाब अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन यह तो कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में 99 ​सीटें हासिल करने के बाद कांग्रेस नये उत्साह से लबरेज है और दूरगामी असर वाले सियासी निर्णय लेने की मुद्रा में आ गई है।


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