समझ में आ रहा सनातनी संस्कृति में वृक्षों को क्यों पूजा जाता
उत्तरकाशी/देहरादून आज मैं देहरादून शहर में था किसी कारण बस मुझे शहर की सड़कों पर पैदल चलना पड़ा एक पैदल चलना ऊपर से 42 डिग्री सेल्सियस तापमान मैं पसीने से तरबतर हो चुका था। मैंने देखा कि एक चौराहे पर एक सूजमेकर प्लास्टिक के टुकड़े से अपना सिर पर छांव लेकर ग्राहक की इन्तजारी में बैठा था मैंने देखा उसके आसपास मक्खी भी नहीं थी।फिर मेरी नजर एक गाड़ी मैकेनिक पर पड़ी वह कड़ी धूप में टायर पर पन्चर लगा रहा था।फिर मैंने चलते चलते एक पीपल के समीप पहुंचा,देखा उसकी पत्तियों की ओट में विभिन्न प्रकार के पन्क्षी अपने लिए आसरा बना बैठे।उस बृक्ष के नीचे लोगों की भीड़ लगी हुई थी लेकिन आजकल निजी वाहन वाले हर जगह अपनी पार्किंग स्थल बना देते हैं, फिर भी उस पेड़ के नीचे खाली स्थल पर एक चाय वाला अपना खोकचा लगाये बैठा था।इस तप्ती गर्मी में भी वह गर्मागर्म चाय बेच था।मैने देखा कि इस पेड़ की छांव में लोग टक टकी लगाये देख रहे थे कब यहां पर जगह मिले।मुझे बचपन की याद है इस सड़क पर हर चौराहे पर पीपल,नीम या वरगद के पेड़ खड़े मिलते जो अपनी शीतल छाया से समस्त जीवों को आनन्दित करते थे। विकास के नाम पर उनकी बली दी गई जिसका परिणाम आज हाई टैम्प्रेचर मिल रहा है,बचपन में हम देखते थे कि हमारे बड़े बुजुर्ग पेड़ों की पूजा किया करते थे।अब समझ में आ रहा है कि सनातन धर्म संस्कृति में पेड़ों को क्यों पूजा जाता था,अपने को बैज्ञानिक युग का कहने वालों यदि अब भी न सम्भले तो तीव्र गति से बढती पर्यावरण असंतुलन से मानव जाति एवं धरा पर समस्त जीवात्मा के अस्तित्व पर संकट आने वाला है।इसलिए प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करें।
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