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*त्याग करने की हिम्मत, त्याग करने की साहस जिसके अंदर हो, वो भक्ति कर पाता है वह भक्त कहलाता है* जब धर्मदास जी साहब भक्त

*त्याग करने की हिम्मत, त्याग करने की साहस जिसके अंदर हो, वो भक्ति कर पाता है वह भक्त कहलाता है*
जब धर्मदास जी साहब भक्ति के मार्ग पर उतरे तो सद्गुरू ने सीधे से कहा
*जात वरण कुल मेट के, भक्ति करो अटूट।*
*कहैं कबीर धर्मदास से, तेरा लागे न जम का खूंट।।*

भक्ति के मार्ग पर चलना है, तो जात वरण कुल का बंधन तोड़ो
*जब लग नाता जाति का, तब लग भक्ति न होय।*
*नाता तोड़ भक्ति करे, भक्त कहावै सोय।।*
तो बहुत बड़ा त्याग चाहिए भक्ति के लिए।

-परम् पूज्य पंथ श्री 108 हुजूर प्रकाशमुनि नाम साहब
( आचार्य कबीर पंथ )

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