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कर्मों के अभाव में ही सिद्धत्व की प्राप्ति : क्षु. विशौम्यसागर जी

बड़ागांव धसान  (टीकमगढ़, मप्र)। श्री 1008 सिद्धक्षेत्र फलहोड़ी बड़ागाँव धसान में सिंघई परिवार द्वारा श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान महोत्सव के अंतर्गत  सुनील प्रश्न शास्त्री हटा के संयोजकत्व में विद्वत संगोष्ठी आयोजित की गयी। संगोष्ठी में जनसंत 108 मुनि श्री विरंजनसागर महाराज के परम शिष्य क्षुल्लक श्री विशौम्यसागर महाराज का मंगल सानिध्य प्राप्त हुआ। 

कार्यक्रम का मंगलाचरण कु. अनुप्रेक्षा सिंघई द्वारा किया गया। संगोष्ठी के निर्देशक बाल ब्रह्मचारी जयनिशांत टीकमगढ़, कार्यक्रम की अध्यक्षता इंजीनियर पारस कुमार जैन यूके, मुख्य अतिथि इंजीनियर सुभाष चंद गढ़ाकोटा, विशिष्ट अतिथि पंडित ऋषभकुमार जैन बड़ागाँव उपाध्यक्ष श्री सिद्धक्षेत्र फलहोडी बड़ागाँव, हुकुम चंद हटैया महामंत्री श्री सिद्धक्षेत्र फलहोड़ी बड़ागांव धसान, इंजीनियर संजीव कुमार जैन लंदन, अतिथि राकेश कुमार केसरिया मंत्री उदार जनकल्याण तीर्थ बड़ागाँव, सारस्वत अतिथि प्राचार्य सुरेंद्र कुमार भगवां, पं. राजेंद्र कुमार चंद्रावली टीकमगढ़ आदि अतिथियों द्वारा चित्रानावरण व दीपप्रज्ज्वलन का कार्य संपन्न किया गया। 

कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों में प्राचार्य सुरेंद्र कुमार जैन भगवाँ ने 'शब्द मत पकड़ो, उसका आश्रय समझो'  पर विचार प्रस्तुत किये। डॉ निर्मल शास्त्री टीकमगढ़ ने कर्मों की मूल और उत्तर प्रकृतियां के ऊपर अपना आलेख प्रस्तुत किया। पंडित राजेंद्र कुमार चंदावली टीकमगढ़ ने सिद्धचक्र विधान की विधि और उसकी विसंगतियां पर अपना आलेख वाचन किया, पं. रमेश कुमार घुवारा ने जैनागम में दान की वैशिष्ट्ता और उसका फल विषय पर अपने विचार रखे।

 पं. ऋषभ कुमार जैन बड़ागाँव ने जैन अनुष्ठान में मुहूर्त का महत्व, पं. राजेश कुमार शास्त्री भगवां ने श्रावक के षट् कर्म और उनकी वर्तमान प्रासंगिकता पर आलेख वाचन किया। सुनील प्रसन्न शास्त्री हटा ने आत्मस्वरूप में बाधक राग-द्वेष विषय पर विचार रखे। पं. अशोक बम्होरी ने सिद्धों का स्वरूप एवं उनका अवस्थान, श्रीमती प्रभा सिंघई ने पद्म पुराण के संदर्भ में सती सीता जी के चरित्र चित्रण पर विचार प्रस्तुत किये पं. सौरभ शास्त्री शाहगढ़ उपस्थित रहे ।

 परम पूज्य क्षु. श्री विशौम्यसागर महाराज ने कहा कि, 'हमें सिद्धत्व की प्राप्ति करने के लिए आठ कर्मों का नाश करना होता है, यह आठ कर्म हमें संसार में भटकाने वाले हैं और इन आठ कर्मों के नष्ट हो जाने पर आठ गुणों का प्रगटपना होना ही सिद्धत्व को प्राप्त करता है। जैसे जैसे हम कर्मों के भार से हल्के होते जाएंगे, वैसे ही हम ऊपर उठते जाएंगे और लोक के अग्रभाग में 45 लाख योजन विस्तार वाले सिद्ध क्षेत्र में जाकर के विराजमान हो जायेंगे। कर्म ही हमें रुलाते हैं, कर्म हमें संसार में भटकाते हैं, कर्म दु:ख देते हैं। इन कर्मों के अभाव के बाद अनंत सुख की प्राप्ति होती हैं।  

कार्यक्रम में उपस्थितजनों का आभार इंजीनियर संजीव कुमार  जैन ने किया। कार्यक्रम में कैलाश चंद,  नुना,  गुलाब चंद  वैद्य, सनत कुमार जैन, सिंघई रतन चंद, सेठ अजीत कुमार  रमेश कुमार, कन्छेदीलाल बम्होरी, आशीष शास्त्री टीकमगढ़ उपस्थित रहे।

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