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दिल्ली में जल संकट : दिल्ली सरकार की लापरवाही

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देश की राजधानी दिल्ली में जल संकट का प्रमुख कारण राज्य सरकार की लापरवाही है, किन्तु वह अपनी कमियों को छिपाने के लिए हरियाणा सरकार पर दोष मढ़ कर खुद को निर्दोष साबित करती रही। दिल्ली सरकार अपने नाकारापन को छिपाने के लिए अदालतों तक में झूठ बोलने से भी संकोच नहीं करती। इसका सबसे बड़ा साक्ष्य यह है कि दिल्ली सरकार के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि वह दिल्ली के लिए पानी दे। उस वक्त तो उसने पानी देने के आदेश का सम्मान करते हुए पानी देने के आदेश को मान लिया, किन्तु बाद में उसे पता चला कि यदि वह दिल्ली के लिए पानी छोड़ देगा तो वह खुद ही जल संकट में फंस सकता है। इसलिए उसने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली को पानी देने के आदेश को मानने से इंकार कर दिया। हिमाचल प्रदेश की दलील है कि, 'हिमाचल प्रदेश तो खुद ही पानी के संकट से जूझ रहा है। यदि उसने दिल्ली को पानी दे दिया तो उसके खेत की फसलें तो सूखेंगी ही, उसके राज्य में लोगों को पेय जल भी नहीं मिलेगा। इसलिए वह दिल्ली को पानी दे ही नहीं सकता।'

हर राज्य को पहले अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने की जिम्मेदारी सबसे पहले है। बाद में वह किसी की भी मदद कर सकता है, लेकिन दिल्ली बात तो यह है कि हिमाचल ने तो पानी छोड़ा ही नहीं, भला फिर कैसे दिल्ली सरकार के मंत्री हरियाणा सरकार पर यह आरोप लगाने में जुटे हैं कि हिमाचल ने पानी तो छोड़ दिया, किन्तु बीच में हरियाणा सारा पानी हड़प कर बैठ गया है। सुप्रीम कोर्ट में हिमाचल प्रदेश की असमर्थता के बाद अब दिल्ली को कहां से पानी उपलब्ध होगा यह चिन्ता का विषय तो है ही, किन्तु उससे भी बड़ी चिन्ता की बात यह है कि दिल्ली सरकार धूर्तता से बाज नहीं आ रही है। अपनी क्षमता पर उठे सवालों का सीधा जवाब न देकर सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली की जनता और आप कार्यकर्ताओं को भ्रमित कर आम आदमी पार्टी के नेताओं को जो भी लाभ मिल रहा हो उसे पाने के लिए वह बिलकुल करें, किन्तु क्या इस बात का जवाब दिल्ली सरकार के पास है कि उसके नाकारेपन का दुष्परिणाम दिल्ली की जनता क्यों भुगते!


हकीकत तो यह है कि दिल्ली सरकार के मुखिया अरविन्द केजरीवाल जेल में हैं और राजकाज घर से तो चलाया जा सकता है, किन्तु जेल से चलाना मुश्किल ही नहीं असंभव है। दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि अरविन्द केजरीवाल जो टालू प्रकृति अपनाते थे वही उनके मंत्री भी अपना रहे हैं। हिमाचल और हरियाणा सरकारों से मिलकर पानी की व्यवस्था करने के बजाए दिल्ली सरकार के लोग दोषारोपण करके तिकड़म करने का वही पुराना खेल खेल रहे हैं, जो खुद उनके नेता केजरीवाल किया करते थे। पहले जब दिल्ली सरकार की कोईं कमी सामने आती थी तो केजरीवाल का एक ही जवाब होता था कि उपराज्यपाल उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं। साथ ही यह भी कहते थे कि प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि दिल्ली सरकार नाकामयाब हो जाए, इसलिए सहयोग नहीं करते। इसके विपरीत वास्तविकता तो यह है कि दिल्ली सरकार के पास किसी समस्या के समाधान के ठोस उपाय ही नहीं हैं। वह 2015 से एक ही तरीका अपनाते हैं कि अपनी नाकामियों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराएं। दिल्ली में पानी का दुरुपयोग व बर्बादी रोकने की कोई ठोस योजना नहीं होने से दिल्ली पानी के अभाव से संकटग्रस्त है। अपनी बदइंतजामी को जब तक आम आदमी पार्टी की सरकार जल संकट के लिए जिम्मेदार नहीं मानती तो भला वह ईमानदारी से समाधान के बारे में सोच भी कैसे सकती है। मात्र तिकड़म से पार्टी तो चलाईं जा सकती है, किन्तु शासन नहीं।

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