logo

कोरोना महासंकट को अवसर में बदला ,मास्क उद्योग को बनाया जीवकोपार्जन का जरिया

खोदावंदपुर (बेगूसराय, बिहार)। एक तरफ दुनिया के लोग कोरोना वायरस महामारी की वजह से आर्थिक संकट से जूझ रहा है । उद्योग धंधे कल कारखाने सब बंद हो गये, जिसके कारण लाखो लोगो की नौकरी चली गयी। बेरोजगार होने के कारण  लाखों लोग विभिन्न प्रदेशों से अपने घर वापस पहुंच हाथ पर हाथ रखकर बैठ गये, जिससे उनकी कमर टूट गयी ।  आसन्न परस्थिति में कुछ लोगों ने इस महासंकट की दौड़ को अवसर में बदलने का का किया। इन्हीं लोगों में से एक हैं खोदावंदपुर प्रखंड के मेघौल निवासी स्व.सूर्यदेव चौधरी के पुत्र विजय कुमार, जिन्होंने अपना स्वरोजगार खड़ा करने का निर्णय लिया। उन्होंने  समय की मांग को देखते हुए मास्क निर्माण और उसके विपणन को अपने जीवन यापन का हथियार बनाया अपनी धर्मपत्नी सोनी देवी की मदद से अपने गांव में ही पारस माश्क लघु उद्योग की स्थापना किया । इस उद्योग की सहायता से स्वतः आर्थिक तंगी से उबरे ही, साथ ही पास पड़ोस की महिलाओं को जोड़कर उसे भी आर्थिक रूप से मजबूत किया । 

पारस मास्क उद्योग के प्रोपराइटर विजय कुमार ने बातचीत के दौरान कहा कि हौसला गर बुलंद हो तो किसी भी ​परिस्थिति को अवसर में बदला जा सकता है । उन्होंने कहा कि शुरू में मास्क सप्लाई को लेकर काफी परेशानी हुई, लेकिन जैसे जैसे प्रशासन ने कोरोना से बचने के लिए मास्क को जरूरी बताया और उसे पहनने के लिए सख्ती बरती, वैसे वैसे मास्क की बिक्री ने जोर पकड़ा। 

उन्होंने बताया कि आज एक दर्जन से अधिक महिलाओं के सहयोग से प्रतिदिन 800 से 1000 तक मास्क का निर्माण करते हैं । इसे अपने पड़ोसी दो सेल्समेनों की मदद से प्रतिदिन क्षेत्रो में सप्लाई करते हैं। विजय अपनी आपबीती बतातें हुए कहते हैं कि बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी । उनके घर में विधवा मां के अलावे एक भाई और एक बहन है । असमय पिता के गुजर जाने से परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उनके  कंधे पर आ गया । परिवार की आर्थिक स्थिति बदतर रहने के कारण वह दिल्ली चले गये । वहां एक प्राइवेट फैक्ट्री में नाइट गार्ड का काम करने लगा, जिससे अपने परिवार का भरण पोषण करने लगा ।  कोरोना के कारण फैक्ट्री बंद हो गयी और उसकी नौकरी चली गयी । बेरोजगारी की वजह से वह अपने घर वापस आ गया।  गांव में न अपनी खेतीबाड़ी, न रोजगार, घर में चूल्हा जलना भी मुश्किल हो गया । फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी तथा आपदा को अवसर में बदलने का संकल्प लिया।

कहते हैं जहां चाह वहां राह, विजय ने कोरोना महामारी से बचाव को लेकर मास्क निर्माण को अपने स्वरोजगार बनाया। अपने घर पर ही पारस मास्क उद्योग मेघौल नाम से प्रतिष्ठान खोलकर कपड़े से मास्क का निर्माण करने लगा। तथा उसको बेचकर प्राप्त आमदनी से अपने परिवार का भरण पोषण करने लगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन को सुनकर विजय ने प्रेरणा ग्रहण की। लोकल को वोकल करने के नारे ने विजय की आंखें खोल दी। उन्होंने मास्क निर्माण को वृहत पैमाने पर छोटे उद्योग को विकसित करने का मन बनाया।

विजय ने अपने प्रतिष्ठान का निबंधन एमएसएमई से कराया। तदुपरांत अपने परिजनों के अतिरिक्त गांव की एक दर्जन से अधिक महिलाओं को मास्क निर्माण से जोड़कर स्वयं विपणन के कार्य को देखने लगे। उन्होंने दो दर्जन महिलाओं और एक दर्जन प्रवासी कामगारों को रोजगार दिया। पारस मास्क उद्योग से जुड़कर गांव की दो दर्जन महिलाएं मास्क निर्माण कर स्वरोजगार कर रही है। इनमें सोनी कुमारी, शांति देवी, पिंकी देवी, सोनी देवी, निधि भारती, खुशबू कुमारी, पूनम कुमारी, राखी कुमारी, अनिता देवी, प्रगति कुमारी, आरती देवी एवं अन्य ग्रामीण महिलाएं शामिल हैं। वे अपना घर गृहस्थी, चूल्हा चौका को संभालती हुई इस संस्था के लिए मास्क बनाती है। इस रोजगार से इन्हें औसतन पांच हजार रुपये अतिरिक्त कमाई हो जाती है। वहीं सुमित झा, मुरारी झा, संजय कुमार सहित दर्जनों ऐसे युवा अप्रवासी कामगार हैं, जो इस प्रतिष्ठान में मास्क के विपनन का कार्य करते हैं। साईकिल, मोटरसाइकिल से गांव की गलियों एवं ग्रामीण बाजारों के दुकानदारों व पास पड़ोस के दुकानों में खुदरा व थोक में मास्क बेचते हैं। इससे इन्हें भी पांच से छह हजार रुपये औसत आमदनी हो जाती है। 

144
14674 views