
चुनाव
मंथन
[
यहां किसी पार्टी से लगाव को परे रखकर बस एक विश्लेषण करने का प्रयास किया है । ]
सन 2024 का चुनाव आया और गया ।
इस वक्त एहसास हुआ कि, क्यों हिंदुस्तान में पिछले करीब 1200 साल से मूल वतनी गुलाम रहे ,
और शायद आगे भी रह सकते है....
क्या आपने कभी गौर किया है कि, हिंदुस्तान के मूल वतनी का मानस कैसा है ?
- वो कभी नाराज नहीं होनेवाला है, चाहे वो मालिक हो या गुलाम । वो अपने मन की मौज का मतवाला है ।
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- वो कभी कल की चिंता करनेवाला नही है, चाहे तूफान आने की खबर हो या आक्रमण ।
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- वो कभी गहराई में जाकर सोचनेवाला नहीं है,चाहे बात खुद की हो या पूरा समाज की ।
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- सब से बड़ी बात यह है कि, वो इतना आलसी है की, कुछ भी करने से पहले , "आज नही कल करेंगे", कहकर बात को टाल देनेवाला है ।
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अब जरा सोचिए ।
इस चुनाव में दो विचारधारा का मुकाबला था ।
एक थी भाजपा की विचारधारा जो मूल वतनी की सलामती की बात पर जोर देता था ।
दूसरी थी कांग्रेस की विचारधारा जो समाज की नही रोजगारी की बात करता था ।
जब भाजपा का "अब की बार, 400 के पार" का नारा लगा तो क्या बात हुई ?
जिन्हो ने देखा की 400 सीट मिल गई तो हमारी कौम पर - हमारे सामाजिक जीवन / रीति रिवाज पर खतरा आ सकता है, वे सब जागृत हो गए । और सब के सब मतदान मथक पर पहुंच गए ।
जिसका फायदा कांग्रेस को मिल गया ।
पर कुछ लोगो ने यह सोचा की , 2014 में हमारी मनचाही सरकार आई थी, 2019 में भी बढ़िया प्रदर्शन करवा दिया था ।
अब तो ये बता रहे है की, 400 पार होंगा तो होनेवाला ही है.....
फिर जब सब कुछ " फील गुड, फील गुड " है, तो चिंता की क्या बात है ?
*और वे लोग सो गए* ।
*जैन साहित्य में एक कथा है* -
सुभूम नाम का एक चक्रवर्ती राजा की सेवा में हजारों देव रहते थे ।
एक बार सुभूम को एक शेखचल्ली जैसा खयाल आया । उसने देवो को आज्ञा दी, मुझे समंदर और दुनिया के उस पार जो दूसरी दुनिया है, वहां ले चलो ।
देव खुद तो अपनी शक्ति से उड़कर जा शकते थे, लेकिन एक मनुष्य के लिए यह संभव नहीं था ।
सब देवों ने चक्रवर्ती राजा के रथ को मिलकर उठाया और समंदर पर से आगे बढ़ने लगे ।
कुछ घंटों का समय बिता, तब एक देव को विचार आया, की चलो जरा में कुछ देर रथ को छोड़ देता हूं , मेरे एक के छोड़ने से कुछ फर्क नही पड़ेगा ।
जाहिर है की, एक का आधार नहीं मिलने से कुछ फर्क नहीं पड़ता था ।
लेकिन फिर एक समय, वे एक क्षण का ही समय ऐसा आया की, आधार देनेवाले सब के सब देव के मन में एकसाथ एक ही विचार आया कि, मेरे एक के आधार छोड़ने से कुछ फर्क नही होनेवाला है ...
और उस खास एक क्षण के लिए सभी, मानो सभी के सभी देवो ने एकसाथ रथ पर लगाया अपना आधार छोड़ दिया .....
और सुभूम चक्रवर्ती का रथ बिना आधार का चक्रवर्ती के साथ समंदर में समा गया.....
बस, भाजपा को आधार देनेवाले भी इस चुनाव में अपना आधार छोड़कर सो गए । ( भाजपा के लिए यह अच्छा हुआ की सभी नहीं सोए थे.)
इस बात की छानबीन करनी हो तो अपने शहर में मूल वतनी बहुल क्षेत्र के मतदान मथक पर कितना मतदान हुआ वोह देख सकते हो, वोह कम ही होगा।
राजनीति में जो सजाग नही रहा वोह काम से गया समझो ।
सामान्य जन का मानस तो आलसी ही होता है, इसे मतदान मथक पर लानेका कार्यभार तो नेता और कार्यकर्ता का होता है । क्या उनसे कोई चूक हो गई ?
भाजपा के लिए यह आत्म मंथन का विषय है ।
और कांग्रेस के लिए यह, "ऐसी भूल कभी भी नहीं हो जाए" इस बात की सावधानी रखने की सीख है ।
*आप की क्या राय है ?*