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ऋण शोध एकल कहानी संग्रह हुआ प्रकाशित पूनम लता जी ने बताया ऋण का सही अर्थ इंक जोन प्रकाशन द्वारा हुआ संग्रह प्रकाशित ।

सर्वप्रथम मैं आपको कहानी के शीर्षक से रूबरू कराना चाहूँगी। मैंने अपनी कहानी का शीर्षक ऋणशोध क्यों रखा। ऋण का अर्थ है कर्ज और कर्ज को चुकाना ही तो ऋणशोध है। कहानी का आधार मैंने अपने आस-पास के परिवेश में घटित घटनाओं को लिया है, जो मेरे अनुभव पर आधारित है। मनुष्य जन्म पाँच प्रकार का ऋणी होता है। वे हैं- 'देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, लोक ऋण और भूत ऋण। यज्ञ के द्वारा देव ऋण श्राद्ध और तर्पण के द्वारा पीत्र ऋण, विद्या दान के द्वारा गुरु ऋण, शिव अराधना से भूत ऋण से मुक्ति का साधन, शास्त्रों में बताया गया है। जब तक जीव ऋण मुक्त नहीं होता तब तक पुनः जन्म से छुटकारा नहीं मिल सकता। मेरी कहानी गुरु ऋण पर आधारित है। यह कहानी लखनऊ में रहने वाले एक ऐसे गुरु की कहानी है जिनके जीवन का उद्देश्य विद्यार्थियों का सही मार्गदर्शन कर उन्हें मजिल तक पहुँचाना है।

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