मां के चरणो मे गंगा, यमुना और सरस्वती वास करती है।
कविता पिरामिड हमने देखें बहुत मंदिर, गुरुद्वारे देखा नहीं है ऐसा धाम मां के चरणो मे भगवान है अपार सागर हैं ये ममत्व की धारा है सूखते नहीं देखा कभी भगवान भी इससे हारा है रहती तकलीफ़ में बच्चों को देती खुशी जीवन पथ पार कराती अच्छे बुरे का ज्ञान कराती है प्रथम गुरु बन मां बोलना सिखाती हैं ले बस्ता संग हमारे मां शिक्षा मंदिर तक पहुंचातीं है आदर करो हमेशा छोटे और बड़ों का सत्य की राहों पर चलो नैतिकता का पाठ पढ़ाती है संस्कार देकर अच्छे देती संस्कृति ज्ञान सभ्य नागरिक हमें बनाती मां समाज में परिवेश कराती है उतार नहीं सकते ऋण मातृत्व का सेवा करो मनोभाव से मां का दिल नहीं तड़पाना है बहती चरणों में है नित्य गंगा जमुना सेवा करके स्नान करो वृद्ध आश्रम न पहुंचाना है मातृत्व ऋण का भारी सेवा से चुकाना है चरणों में स्वर्ग इसके भव से सागर तर जाना है लेखिका विजयलक्ष्मी हरियाणा