क्या अरविंद केजरीवाल सचमुच अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर हैं...?
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क्या आम आदमी पार्टी के मुखिया तथा दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सचमुच अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर हैं..? आपको बहुत हैरानी होगी मेरे इस सवाल पर, क्योंकि अरविंद केजरीवाल चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं, इंडी गठबंधन के अन्य सहयोगियों के साथ पत्रकार वार्ता कर रहे हैं और इसके साथ ही पीएम मोदी और भारतीय जनता पार्टी को पानी पी पीकर कोस रहे हैं। फिर उसके बाद भी ऐसा सवाल क्यों..? तो मैं आपको बता दूं कि मुझे खबर मिली है कि अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी ही नहीं है, जैसा कि प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया की सुर्खियां बनी हुई हैं।
फिर आप पूछेंगे कि यदि अरविंद केजरीवाल को जमानत नहीं मिली है तो वे जेल से बाहर कैसे घूम रहे हैं..? तो मैं आपको बता दूं कि जैसा कि मुझे खबर मिली है कि केजरीवाल के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी जमानत के लिए याचिका दायर ही नहीं की थी। इसके विपरीत उन्होंने केजरीवाल की गिरफ्तारी को ही अवैध और गैरकानूनी बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए 20 दिन के लिए सशर्त पैरोल पर जेल से रिहा करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट की शर्त के मुताबिक 20 दिन के बाद दो जून को अरविंद केजरीवाल को पुन: जेल जाना पड़ेगा। इतना ही नहीं, बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, 'हम सोच भी नहीं सकते केजरीवाल को किसी भी तरह की रिलीफ देने के बारे में, अगर यह चुनाव की प्रक्रिया नहीं होती।'
आपको बता दें कि अंतरिम जमानत के विपरीत पैरोल पर रिहाई उन्हीं व्यक्तियों को मिलती है, जो कि वास्तव में गुनहगार होते हैं। अंतरिम जमानत में जेल से बाहर आने वाला व्यक्ति न्यायिक हिरासत से बाहर होता है, जबकि पैरोल पर रिहा होने वाला व्यक्ति जेल से आजादी के बावजूद न्यायिक हिरासत में माना जाता
है। अंतरिम जमानत में रिहा होने वाला व्यक्ति रिहाई की अवधि पूरी होने पर कोर्ट में रिपोर्ट करता है। पैरोल पर रिहा व्यक्ति रिहाई की अवधि पूरी होने पर जेल में रिपोर्ट करता है।
और आपको यह भी बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में एक और भी विरोधाभास देखने को मिला है। जेल में वक्त गुजारने के दौरान कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने वाले अरविंद केजरीवाल को पैरोल पर रिहा करते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि वे इस दौरान तकनीकी रूप से सस्पेंडेड चीफ मिनिस्टर के रूप में कार्य करेंगे। यानि पेरोल की अवधि में वह बतौर चीफ मिनिस्टर किसी भी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर सकेंगे। इस अवधि में वे सचिवालय भी नहीं जा सकेंगे तथा न कोई आदेश जारी कर सकेंगे।
तो आप समझ लीजिए कि केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से उसी तरह फौरी आजादी मिली है, जिस तरह हरियाणा के डेरा सच्चा सौदा के बाबा राम रहीम को दिल्ली की कोर्ट से गाहे बगाहे सत्संग के लिए कुछ दिन के लिए फौरी आजादी मिल जाती है। पैरोल पर रिहाई मिलने से किसी भी गुनहगार का गुनाह कम तो नहीं हो जाता। यही बात अरविंद केजरीवाल के साथ है। वे भले ही पीएम मोदी और भाजपा को जमकर कोसें और गालियां दें, पर उन्हें अच्छी तरह मालुम है कि अंतत: उन्हें पेरौल की अवधि पूरी होते ही जेल जाना पड़ेगा। इससे उन्हें कोई नहीं बचा सकता। यही वजह है कि वे अंदर से बुरी तरह घबराए हुए हैं और वोटरों से भाजपा को वोट न देने को कह रहे हैं।