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बागी पुरुष नेता की घर वापसी पर भाजपा ने दिया बल , बागी महिला नेत्री के साथ किया भेदभाव पूर्ण छल

भाजपा व भाजपा के पुरोधाओं से सवाई माधोपुर के मतदाता व आम जनता पूछती है सीधा सा सवाल ?
अबकी बार क्यों 400 पार ?
सवाई माधोपुर ( चन्द्रशेखर शर्मा)। टोंक - सवाई माधोपुर लोकसभा क्षेत्र में शामिल सवाई माधोपुर जिले में लोकसभा चुनाव को देखते हुए बागियों की घर वापसी की शुरुआत तो जरूर हुई ,लेकिन हुई आधी- अधुरी और सही मायने में देखा जाए तो यहां सिद्धांतहीन प्रकिया का बोलबाला रहा। जो की भाजपा की सिद्धान्तवादी विचार धारा के खिलाफ माना या कहा जा सकता है। आपको बता दें कि सिद्धान्तों की हर पल दुहाई देने वाले भाजपा के बड़े नेताओं ने यहां पूरी प्रक्रिया में भेदभाव पूर्ण रवैया व नीति अपनाई। इस प्रक्रिया में एक और जहां कमजोर जिला अध्यक्ष और अहंकारी प्रदेश नेतृत्व का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार चरम पर रहा वहीं बड़े नेताजी ने भी अपने अहम के चलते अपनी ताकत का इस्तेमाल कर भाजपा नेत्री की घर वापसी में रोड़े अटकाने में शायद कोई कोर - कसर बाकी नहीं छोड़ी। इस लिए विधानसभा चुनाव के समय टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले दो प्रमुख बागीयों में से एक पुरुष बागी ( 6 वर्ष के लिए पार्टी की सदस्यता से निष्कासित) को जिसने विधानसभा चुनाव में पार्टी के सिम्बल प्राप्त वरिष्ठ भाजपा नेता को हराने में प्रमुख भूमिका ही नहीं निभाई बल्कि बगावत कर खुद चुनाव हारे और पार्टी की नैया डुबोने में तन मन के साथ अपना धन भी दांव पर लगाने से नहीं चूके। भले ही व्यापारी से नेता बने नेता जी चुनाव हार गए, लेकिन भविष्य के लिए भाजपा के लिए बड़ी भारी परेशानी खड़ी कर गए। जिसे आगे चलकर पाटना बहुत मुश्किल है।मानसिंह गुर्जर जैसे समर्पित व निष्ठावान व शीर्ष नेतृत्व के चहेते वरिष्ठ भाजपा नेता को विधानसभा चुनाव में हाशिए पर भी ला खड़ा किया। जिसने तन मन व धन के बलबूते गंगापुर सिटी विधानसभा क्षेत्र में कभी भी पार्टी का झंडा नीचे नहीं गिरने दिया। पार्टी की ऐसी क्या मजबूरी रही की पार्टी ने उसी व्यक्ति की मर्जी के खिलाफ जाकर नौसिखिए बागी नेता को बिना शशर्त माफी देते हुए 6 साल तो बहुत दूर की बात रही अपने निजी स्वार्थ के खातिर छ: माह पूर्ण नहीं होने से पहले ही अपने पास बुलाकर दोबारा से भाजपा की सदस्यता दे दी। लेकिन सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय एवं विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की जड़ें मजबूत करने में अपने पांच साल गंवाने वाली भाजपा नेत्री की ओर ध्यान देना तक मुनासिब नहीं समझा। भाजपा यह क्यों भूल गई की, नेता कम व्यापारी ज्यादा पुरुष बागी उम्मीदवार से ज्यादा वरिष्ठ भाजपा महिला नेत्री का क्षेत्र में जनाधार सुदृढ़ और गहराई तक मजबूत है। भले ही पूर्व भाजपा नेत्री को पार्टी ने निष्कासित कर रखा हो, लेकिन भाजपा नेत्री आज भी सवाईमाधोपुर विधानसभा ही नहीं पूरे सवाई माधोपुर की आम जनता के दिल ओर दिमाग में हृदय पटल (मन में) तक छाई हुई है। लेकिन देश भक्ति, राष्ट्रहित, सबका साथ- सबका विकास की दिन रात माला जपने वाली पार्टी और उसके अहंकारी भाजपा नेतृत्व ने भाजपा नेत्री के साथ भेदभाव तो किया ही और सब कुछ समझते हुए भी छल करने से नहीं चूकी। लोकसभा चुनाव को लेकर क्षेत्र की जनता का , मतदाताओं का , महिला वर्ग का भाजपा नेतृत्व से, भाजपा की दलाली करने वाले से, समय की नजाकत को समझकर भाजपा का दुरुपयोग करने वालों से यही एक सवाल है कि लोकसभा चुनाव में उनकी गलती को दरकिनार कर उनकी भाजपा में वापसी को क्यों रोका गया? या किसके द्वारा और किस होहदे और मनसूबे से किसके कहने से या किसके दबाव में उनकी वापसी को रूकवाया गया, यह सवाल हर मतदाता , भाजपाइई व जनता जनार्दन स्वयं भाजपा से पूछती है? क्यों और किस सोची समझी साजिश के तहत किस आधार पर समय रहते हुए भाजपा नेत्री को पुनः भाजपा में आने के लिए आमंत्रित क्यों नहीं किया गया । क्यों नहीं उनकी पिछली गलती को भूलकर उनकी भाजपा की सदस्यता बहाल की गई? क्यों नहीं गंगापुर सिटी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी की लुटिया डुबोने वाले बागी छोटे लाल की तरह आशा मीणा के अपराध को भाजपा माफ नहीं कर पाई‌? क्यों नहीं आशा मीणा को इंसाफ मिला? क्या इसलिए कि वह पुरुष की बजाय महिला वर्ग से हैं। इसलिए उन्हें कमजोर कड़ी समझकर अपने हाल पर छोड़ दिया गया। भाजपा यह क्यों भूल गई की उनकी अंतरात्मा में आज भी भाजपा और भाजपा के विचार ही बसते हैं। अगर वह अपना मतदान करेगी तो कमल के बटन पर ही अंगुली जाएगी। लोगों की चर्चा को इस मसले में शामिल करें तो यह भी संभव है कि कहीं न कहीं इस काम में भाजपा व भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चिर-प्रतिद्वंद्वी नेताजी की मर्जी के आगे घुटने टेकने को तो मजबूर नहीं हो गया। दूसरी ओर 400 पार की महत्वाकांक्षा में भाजपा को यह बात तो पूरी तरह ध्यान रही की गंगापुर सिटी में छोटे लाल की वापसी से माली मतदाताओं सहित उनके समर्थकों का साथ (मत और समर्थन) भाजपा को पुरजोर तरीके से मिलेगा, लेकिन यह बात क्यों भूल गई की सवाईमाधोपुर में जन जन के मन और मस्तिष्क में भाजपा की छवि को जिंदा रखने वाली( तत्कालीन भाजपा जिलाध्यक्ष भारत लाल मथुरिया के जिलाध्यक्ष पद छीनने के बाद स्थानीय नेताओं द्वारा जबरन थोपे गए कमजोर जिलाध्यक्ष की नियुक्ति के पश्चात उस समय के सत्तासीन विधायक के इशारों पर कठपुतली की तरह नाचने वाले पुलिस व प्रशासनिक अधिकारीयों (ईमानदार अधिकारियों को छोड़कर) के भेदभाव पूर्ण रवैये व आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त गुंडा तत्वों के खिलाफ व जन विरोधी कांग्रेस सरकार के विरुद्ध हजारों कार्यकर्ताओं के बीच एक खडी अकेली महिला जिसने सवाई माधोपुर में भाजपा की जड़ों को सींचने में दिन रात एक कर दिया उस को भाजपा में वापिस लाने की तक कोई कोशिश ही नहीं की गई।आज सत्ता के मद में चूर भाजपा ने पूर्व भाजपा नेत्री के पार्टी से बाहर होने पर भाजपा को कितना भारी नुक़सान होगा। यह कतई नहीं सोचा। सोचे भी तो कैसे अभी सभी का दिमाग सांतवे आसमान पर जो है। गांठ बांध लो भाजपा से नाराज मीणा मतदाताओं को सिर्फ श्रीमती आशा मीणा ही साध सकती थी,यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है। और ऐसा ही राजनैतिक पंडित और सर्वेयर मानते हैं।यह तो उस स्थिति में जब सवाई माधोपुर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के चलते हाल के समय में बहुसंख्यक मीणा मतदाताओं का पूरा रूझान विपक्षी पार्टी की और है। गौरतलब है कि यहां कांग्रेस ने मीणा प्रत्याशी को मैदान में उतारा हुआ है, जो बहुसंख्यक मीणा मतदाताओं के अलावा,एसी और अल्पसंख्यक मतदाताओं के भरोसे अपनी जीत पक्की मानकर चल रहा है, दूसरी ओर भाजपा से दो बार के सांसद ( राजनैतिक स्तर पर शीर्ष नेतृत्व की एप्रोच व दौलत का भारी-भरकम घमंड ) जोनपुरिया यहां से तीसरी बार बतौर भाजपा प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। जिनसे मीणा मतदाता ही नहीं खुद भाजपा के लोग भी खासे नाराज हैं। और उनके प्रति यह नाराजगी चुनाव प्रचार में खूब देखने को भी मिली है। भाजपा के थिंक वोट बैंक व मौजूदा मोदी लहर के चलते तत्कालीन सांसद की एक बार और किस्मत जाग सकती है,इस कथन में कोई संदेह नहीं है। लेकिन आशा मीणा की अनुपस्थिति से जोनपुरिया को अबकी बार बहुत नुक्सान हुआ है। यहां तक कि मत और समर्थन में वे भाजपा नेत्री के सहयोग के बिना कई मतदान केंद्रों पर बुरी तरह से पिछड़े हैं। आपको मानना होगा कि पहले की तरह उनका जलवा बरकरार नहीं है, क्योंकि जो भाजपा से जुड़े मतदाता हैं उनमें आशा मीणा के समर्थक ज्यादा है,बजाए नेताजी समर्थकों के। श्रीमती आशा मीणा का जादू मतदाताओं पर सिर चढ़कर बोलता था। यह तो लोगों की ( खुद मीणा मतदाताओं की ) मजबुरी थी की वो धर्म संकट के दौर में जा फंसे। इसलिए उन्होंने जवान की बजाय वृद्धावस्था वाले को चुना। अगर समय रहते उनकी( आशा की)भाजपा में वापसी होती तो लोकसभा चुनाव व चुनाव प्रचार का नजारा कुछ और ही होता। क्योंकी पूरे लोकसभा चुनाव प्रचार में निर्वाचित विधायक का मीणा मतदाताओं सहित दूसरे मतदाताओं को भाजपा की और मोड़ने में कोई विशेष योगदान नहीं दिखाई दिया। प्रधानमंत्री व स्टार प्रचारकों के अलावा सामान्य सभाओं में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। इस मुगालत में ऐसा और प्रतित हुआ कि कहीं कांग्रेस प्रत्याशी के प्रति नरमी या दरियादिली नेताजी की मौन स्वीकृति तो नहीं है।मंत्री जी सारे चुनाव प्रचार में स्टार प्रचारक बन कर दूसरे लोकसभा क्षेत्रों ( विशेष कर दौसा ) में भाजपा के पक्ष में मतदाताओं को रिझाते हुए जरूर नजर आए, लेकिन स्वयं की विधानसभा से जुड़े लोकसभा क्षेत्र में ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। इसलिए यहां भाजपाइयों और आमजन को पूर्व भाजपा नेत्री की खासी कमी खली। और यह तथ्य भी सही है, कि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद जब भाजपा प्रत्याशी कुछ एक अंतर से जीत दर्ज करेंगे या फिर हार का सामना करेंगे जब स्वयं भाजपा को इस बात का एहसास होगा कि उन्होंने सर्व जन प्रिय भाजपा की कर्मठ, समर्पित, निष्ठावान व योग्य कार्यकता को किनारे कर सही काम नहीं किया। भाजपा यह भी भूल गई की 30 हजार से अधिक मत लाकर नेता जी की जीत सुनिश्चित करने में उनका बड़ा भारी योगदान रहा भले ही वह बागी के तौर पर चुनाव लड़ी, लेकिन यहां भाजपा को नुक्सान के बजाय फायदा ही पहुंचाया। इसलिए कांग्रेस से सीट छीन कर वह पुनः वापसी कर पाई और नेताजी को मंत्री पद तक भी नसीब हो गया( हारते तो नहीं होता)। इसके विपरित जिस छोटे लाल जी ने वरिष्ठ भाजपा नेता और निष्ठावान कार्यकर्ता भाजपा प्रत्याशी गुर्जर को तिसरे स्थान पर धकेलने, उनकी राजनैतिक प्रतिष्ठा पर हार का दाग़ लगाने की जानबूझ कर कोशिश, वह अपनी नाक कटाने से भी नहीं बच पाए। भाजपा का विधानसभा चुनाव में क्या हस्र हुआ यह शायद यहां बताने की आवश्यकता भी नहीं है।इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगर यही रवैया भाजपा के दंभी नैताओं व प्रदेश नेतृत्व का इस बार भी लोकसभा में बरकरार रहा हैं तो परिणाम चौंकाने वाले ही होंगे। क्योंकी इनकी पिछली गलती से कांग्रेस विरोधी लहर के बाद भी बामनवास व गंगापुर सिटी विधानसभा चुनाव में अवैध बजरी के संरक्षणकर्ता चुनाव में सफलता हासिल कर गए और इन्हें बुरी तरह हार का स्वाद चखना पड़ा। कहीं एक बार फिर ऐसा ना हो की 400पार की उम्मीद लगाए बैठे खुदगर्ज व मतलबी भाजपा नेताओं को अटल जी के जमाने की तरह इंडिया शाइनिंग (भारत उदय) जैसी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ जाए। खैर अब केवल मोदी लहर ही भाजपा व भाजपाईयों के लिए संजीवनी मात्र है। बाकी जिन नेताओं या मंत्रीयों की चारों अंगुलीयां धी में है, उन्हें जनता जनार्दन की परेशानीयों से कोई मतलब नहीं है जनता की उन्हें कोई फ़िक्र भी नहीं है । क्योंकि उनकी ऐसो आराम की जिंदगी में अगले पांच साल कोई रोड़े अटकाने वाले नहीं हैं। सवाई माधोपुर जिले में मलारना डूंगर से लेकर खंडार, बौंली, गंगापुर चौथ का बरवाड़ा आदि सभी जगहों पर अवैध बजरी का खेल सत्ता परिवर्तन के बावजूद बदस्तूर जारी है। शायद कांग्रेस राज से भी बेहतर....... जनता जाए भाड़ में.....

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