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क्रेशर संचालन में पर्यावरण मापदंड दरकिनार , युवा अधिवक्ताओं ने एन जी टी के समक्ष दायर की याचिका

क्रेशर संचालन में पर्यावरण मापदंड दरकिनार , युवा अधिवक्ताओं ने एन जी टी के समक्ष दायर की याचिका

डिंडोरी से राजेश विश्वकर्मा की स्पेशल रिपोर्ट- जिले में लगभग 55 से 56 क्रेशर ऐसे हैं ,जिनका संचालन पर्यावरण नियमो को दरकिनार किया जा रहा है।और समय - समय पर अखबारी सुर्खियां भी जिला प्रशासन के संज्ञान में ऐसे मामले लाती रही,लेकिन कार्यवाही महज औपचारिकता तक सिमट कर रह गई थी,ऐसे में नगर के युवा अधिवक्ता सम्यक जैन और उनके अधिवक्ता साथी मनन अग्रवाल और धीरज तिवारी ने एक याचिका एन जी टी की प्रधान पीठ के समक्ष प्रस्तुत की है, इस दावे के साथ की जिले में संचालित अधिकांश स्टोन क्रेशर पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनते जा रहे हैं। और ऐसे अवैज्ञानिक खनन से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। तीनों ही अधिवक्ताओं ने यह तर्क भी दिया की ऐसे क्रेशरों के आसपास रहने वाले लोगों का जीवन संकट में है,जिसमे ट्रिब्यूनल से हस्तक्षेप की मांग है। बता दें की अधिवक्ता सम्यक और उनके साथी अधिवक्ताओं ने पर्यावरण को संरक्षित रखने एक मुहिम छेड़ रखी है और वह समय - समय पर मानव कल्याण के लिए ऐसे संवेदनशील और गंभीर मामलों को लेकर आगे आते रहते हैं।

सच ऐसा की हैरत में पड़ जाएंगे आप -- युवा अधिवक्ताओं ने एन जी टी के समक्ष जो याचिका दायर की है उसमे स्पष्ट तौर में आदिवासी अंचल में सी चल रहे हालातों का जिक्र किया गया है। जैसे की वायु प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले स्टोन क्रेशरो के संचालन से जमकर लापरवाही बरती जा रही है,जिसके चलते जलापूर्ति की समस्या तो बढ़ी ही ,साथ ही क्रेशर मशीनों से निकली डस्ट हवा में बहाओ के साथ पेड़ - पौधो ,प्राणी जगत और जलस्रोतों को दूषित कर रही है। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात यह भी कि इन क्रेशर स्थलों के इर्द गिर्द बड़ी मात्रा में नियमो से परे अवैध विस्फोटकों का प्रयोग किया जा रहा है,जो को हवा और पानी गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

प्रदूषण रोकने उठाए गए कदम अपर्याप्त -- दायर याचिका में इस बात पर भी बल दिया गया है की जल, वायु और प्रदूषण रोकने के लिए अब तलक उठाए गए कदम अपर्याप्त हैं। चूंकि पत्थर तोड़ने और उत्खनन गतिविधियों का मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण गुणवत्ता दोनों पर जबरिया दुष्प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत वैधानिक सुरक्षा उपाय, जल (रोकथाम और नियंत्रण) प्रदूषण) अधिनियम, 1974 और वायु रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम, 1981 का वैधानिक नियामकों द्वारा पालन और निगरानी करने की आवश्यकता है।

प्रशासन द्वारा नही किए जा रहे प्रयास -- अधिवक्ताओं ने इस बात का हवाला भी दिया है की स्टोन क्रशरों में अपेक्षित प्रदूषण नियंत्रण उपकरण स्थापित नहीं किए हैं और ना ही अपेक्षित हरित पट्टी बनाई गई है ,इसके अलावा न ही अन्य सुरक्षा उपाय अपनाए गए हैं। जिसके परिणामस्वरूप जल स्तर कम हो रहा है और जल संकट की स्थिति भयावह होती जा रही है, कृषि उत्पादकता भी घट रही है ,और ” ये प्रभाव धूल, ध्वनि और जल प्रदूषण के लिहाज से गंभीर हैं। स्थानीय
याचिका में कहा गया है कि क्षेत्र में संचालित इन इकाइयों का पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव को कम करने प्रशासन द्वारा कोई सकारात्मक पहल नहीं की जा रही है।

अधिवक्ताओं ने तो यहां तक कह दिया कि पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की वजह से वन क्षेत्रों में में पौधों और जानवरों को भी नुकसान पहुंचा है। साथ ही इसकी वजह से मूल निवासियों की जीविका भी प्रभावित हुई है।

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