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AIMA की ओर से जलियांवाला बाग कांड के शहीदों को कोटि कोटि नमन


नमस्कार, आइमा मीडिया में आपका स्वागत है।


आज यानि 13 अप्रैल को पंजाब के अमृतसर जिले के ​जलियांवाला बाग कांड की 105वीं बरसी है। आज से 105 वर्ष पूर्व 13 अप्रैल 1919 को मुल्क को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में एकत्र हुए आजादी के दीवानों पर क्रूर जनरल डायर ने अपने सैनिकों से फायरिंग करवा दी थी। इस सामूहिक हत्याकांड में एक हजार से अधिक लोग शहादत की भेंट चढ़ गए थे। जलियांवाला बाग में हुई क्रूरता और जुल्मो सितम की इंतिहा ने देश के बच्चे बच्चे को अंग्रेजों के खिलाफ जगा दिया था।

वह साल था 1919 का और उस दिन जलियांवाला बाग तथा आस पास के इलाके में सूबे के प्रमुख त्योहार बैशाखी का मेला लगा हुआ था। इसी बाग में उस दिन अंग्रेजों की दमनकारी नीति के खिलाफ क्रांतिकारी भी एकत्र हुए थे। वे रोलेक्ट का विरोध कर रहे थे। इसके अलावा क्रांतिकारी सत्यपाल और सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के विरोध में बाग में जनसभा बुलाई गई ​थी। हालांकि, उस दिन शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था। इसके बावजूद जनसभा में बड़ी तादाद में देश प्रेमी एकत्र हुए, जिससे अंग्रेज बौखला गए।

अंग्रेजों को महसूस हुआ कि कहीं फिर से सन् 1857 जैसी नौबत न आ जाये। इसलिए मुल्क के रहनुमाओं की उठती इस आवाज को पूरे तरीके से कुचल देना चाहिए। लिहाजा जनरल डायर को इस विरोध से निपटने की जिम्मेदारी दी गई। जनरल डायर बिना मौका गंवाए तुरंत अपने 90 हथियारों से लैस ब्रिटिश सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंच गया। ब्रिटिश सैनिकों ने जलियांवाला बाग को चारों तरफ से घेर लिया। उस वक्त जलियांवाला बाग में करीब पांच हजार लोग मौजूद थे। इनमें महिलाएं एवं बच्चे भी शामिल थे, जो कि बाग में लगे बैशाखी के मेले का आनंद उठाने आए थे। ये सभी निहत्थे थे। दूसरी ओर बाग में मौजूद क्रांतिकारी भी शांतिपूर्ण तरीके से जनसभा कर रहे थे।

अंग्रेजी सैनिकों ने जनसभा को घेरकर सारे भागने के रास्ते बंद कर दिये और जनरल डायर ने बिना कोई चेतावनी दिये अपने सैनिकों को फायरिंग का आर्डर दे दिया। ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थे बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। ब्रिटिश सैनिकों ने केवल 10 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलाईं। वहां मौजूद एक भी शख्स बाग से नहीं निकल पाया, क्योंकि चारों तरफ मकान थे और बाहर जाने के रास्ते पर खड़े थे ब्रिटिश सैनिक।

उनकी गोलियों से बचने के लिए कोई दीवार पर चढ़ने की कोशिश में शहीद हो गया और कोई वहां मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गया। उस कुएं की हालत ये थी कि वो लाशों से पट गया था।

इस नरसंहार में शहीद हुए लोगों का सही आंकड़ा आज तक नहीं मिल पाया, लेकिन जलियांवाला बाग में लगी सूची में 388 शहीदों का जिक्र है, जबकि ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के जख़्मी होने का दावा किया गया है। हालांकि अनाधिकारिक आंकड़े के मुताबिक एक हजार से ज्यादा लोग इस नरसंहार में शहीद हुए थे। इस सामूहिक नरसंहार ने देशवासियों में अंग्रेजों के जुल्मो सितम के खिलाफ एक नई ऊर्जा भर दी तथा उन्होंने अंग्रेजों को भारत से भगाने का दृढ़ संकल्प ले लिया और अंतत: अंग्रेजों को मुल्क से बाहर भगाकर ही दम लिया।

आज जलियांवाला कांड की बरसी के मौके पर आल इंडिया मीडिया एसोसिएशन परिवार श्रद्धापूर्वक देश के तमाम ज्ञात अज्ञात शहीदों को कोटि कोटि नमन करता है तथा उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


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