
सुरखी विधानसभा उपचुनाव में कांटे की टक्कर
सागर (मध्य प्रदेश)। जब सियासी जंग के मैदान में दोनों महारथी परिणाम बदलने में महारत हासिल रखते हों तो उस विधानसभा में कुछ भी कहना जल्दबाजी होती है। सुरखी विधानसभा के उपचुनाव में दोनों प्रतिद्वंद्वियों में जो समानता दिख रही है वो है 'खुद से ज्यादा किसी को भी न समझना और खुद पर हद से ज्यादा घमंड करना'। इसका कारण अपने आप में हद से ज्यादा सबल होना भी हो सकता है।
ऐसी ही एक समानता में दोनों पार्टियों की तरफ से इस विधानसभा में जिले से लेकर उस क्षेत्र के कद्दावर नेता अपनी सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं, ऐसें नेता जो पार्टी धर्म का दायित्व निभाते हुए अपने उम्मीदवार को जिताने का सपना सजों रहे हैं, उन्हें न तो मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के यहां वो सम्मान मिल पा रहा है और न पारुल साहू केसरी वो सम्मान दे पा रहीं हैं।
इस बार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारी/कार्यकर्ता इस विधानसभा चुनाव में अपने-अपने उम्मीदवार जिताने को आतुर दिख रहे हैं पर जैसे ही वो इस विधानसभा में प्रचार-प्रसार करने के लिए सक्रिय होने की कोशिश करते हैं तो वो अपने उम्मीदवार के बर्ताव से आहत हो जा रहे हैं।
मध्यप्रदेश की राजनीति में सागर जिले से दखल रखने वाले ऐसें नेताओं को अपने हाईकमान को यह जानकारी देनी चाहिए। फिलहाल इस उपचुनाव में अभी के हालातों में परिणामों पर कुछ भी कहना बेमानी होगी। पारुल साहू केसरी को अपने पिता और भाई का साथ मिलना उनके लिए सबसे सुखद अनुभूति होगी वहीं मंत्री गोविंद सिंह के लिए उनका साथ देने पूरा परिवार एक मुठ्ठी में बंधा नजर आता है। जीत के परिणामों में पार्टी संगठन अहम भूमिका निभाती है। अब देखना होगा, अहम के बहम में उलझे दोनों उम्मीदवार इस बात को कब अच्छे से समझ पाते हैं।
इस विधानसभा का उपचुनाव अंत तक रोचक रहने वाला है। हार-जीत कब किस तरफ करवट बदल ले उसके लिए अभी से कुछ भी कहना जल्दबाजी ही कही जाएगी।